Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 443
________________ भाष्यगाथा ६६६५-६७०१] विशतितम उद्देशकः ४०६ जतो भण्णति - दुग्गविसमे वि न खलति, जो पंथे सो समे कहष्णु खले। कज्जे विश्वजवजी, स कहं सेवेज दप्पणं ॥६६१८॥ पूर्षि दिटुंतो कंठो, पच्छढे दिलृतियो प्रत्यो। "कज्ज" ति - प्रववादठाणपत्ते वि भववादो "अवज"मिति पावं, तं जो वजेति, स दप्पेण कहं पावं सेवेज्जा ? ॥६६६८॥ इदाणि अणुप्रोगधरो अप्पणो गारवणिरिहरणत्थं सोताराण य लजाणिरिहरणत्थं पाह अम्हे वि एतधम्मा, आसी वट्टति जत्थ सोतारा । इतिगारवलहुकरणं, कहए ण य सावए लजा ॥६६६६॥ अणुप्रोगकही चिंतेति भणाति वा - प्रम्हे वि एस एवं चेव गुरुसमीवातो सोयवधम्मा भासि, जत्य संपदं सोतारा वट्टति । "इति" उवप्पदरिसणे, एवं "अणुप्रोगधरो प्रह" मिति अप्पणो जं गारवं तं णिरिहरति । 'ण य सावए" ति, जे सोयारा तेहिं वि सुणंतेहि चितियव्वं "एस गणघरारद्धो सोतव्वकप्पो पारंपरेण प्रागते' त्ति श. उंग लज्जा कायवा ॥६६६६।। एत्थ पुणज्झयणे इमेहि पगारेहि अत्थऽधिकारा गया पच्छित्तऽणुवाएणं कातऽणुवातेण के ति अहिगारा । ज्वहिसरीरऽणुवाया, भावणुवादे ण य कहिं पि ॥६७००॥ पच्छित्ताणुवाते णए जहा सम्वे मासगुरुसुत्ता पढममुद्दे से अणुवत्तिया, बितियादिसु मासलहू, छट्ठादिम चउगुरु, बारसमादिसु चउलहू । अहवा-पच्छित्तणुवातो पणगादिगो जाव चरिमं, जहा दगतीरे प्रसंघसंघातिमेसु, एवमादि कायणुवाएग, जहा -- पेढियाए पुढवादिकाएसु भणियं । अहवा - छक्काय चउसु लहुगा ।। गाहा ।। एवमादिसु उवहिमणुवातो जहण्णमझिमुक्कोसो, तेसु जहा संखं - पणगमासच उमासो । अहवा - अहाकडस्स परिकम्मा बहुकम्मं ति । सरीरमगुवातो जहा -- वज्जरिसभनाराचसंघयणातिगो । __अहवा - वि दिश्चमणुयतिरियसरीरा सच्चित्तेतरा पडिमाजुत्ताणि वा पिसियचित्ताए वा बेइंदियसरीरादिणा। भावाणुवायतो, जहा- सप्रभेदा णागदंसगचरित्तायारा । अहवा - परितावमहादुक्खादिगा एवमादि ॥६७००॥ क्वचिदीदृशाः .. गविहकुसुमपुप्फोवयारसरिसा उ केइ अहिगारा । सस्सवतिभूमिभावित-गुणसतिवप्पे पकप्पम्मि ॥६७०१॥ प्रणेगजातिएहि अणेगवणहि पुप्फेहिं गुप्फोवयारो को विचित्तो दोसति, एवं सुत्तत्थविकप्पिया प्रणेगविहा मत्थाधिकारा दट्ठव्वा । कहं ?, उच्यते- पकप्पो, सो केरिसो? गुणसइ दप्रतुल्लो। वप्परूपकं इमं - सस्यं यस्यां भूमौ विद्यते सा भूमी सस्यवती सस्ययुक्ता, क्वचिच्छाली क्वचिदिक्षु क्वचिज्जवा क्वचिद्वीहयः, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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