Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 581
________________ सभाष्यचूरणं नशीथसूत्र परिहार-तप मे भीत को प्राश्वासन अतिप्रमाण भोजन अवम भोजन बान्त भोजन का अपवाद ग्लानसेवा और तदर्थ अभ्यर्थना धर्म की आपण (दुकान) पषगा-काल में परिवर्तन पपणा में कलह-व्यपशमन क्रोध मान माया लोभ भाव वर अतिप्रमागा-भनग्रहरा प्रहाच्छंद द्वारा समानता का दावा वेदोपांत पण्डक उपकरणोपहत पण्डक बातिक क्लीब स्त्री-पुरुष के परस्पर संवास-सम्बन्धी दोष कालकाचार्य और उज्जयिनी-नरेश गर्दभिल्स अगड, नदी प्रादि प्रतिभोजी दरिद्र बटुक और अमात्य बटलोई रत्नवरिण द्वारा चोराकुल अटवी को यात्रा दानार्थी, साथ ही अभिमानी महक सुवर्णादि का क्रय गान्धिक प्रापरण में मद्य-क्रय ११० कालकाचार्य और महाराष्ट्र-नरेश सातवाहन १३१ खलिहान जलाने वाला कुम्भकार १३८ उदायन और चण्डप्रद्योत १४. दरित कृषक और चौर-सेनापति १४७ गोघातक मरुक १५० मच्चकारिय भट्टा १५० पंटरज्जा साध्वी १५१ रस-लोभ से प्रार्य मंगुका यक्ष-जन्म, सुखनंदी ग्राम महत्तर और चौर सेनापति मबिन्दु २०६ २२१ पैतृक सम्पत्ति के समानाधिकारी चार कृषक पुत्र राजकुमार हेम २४३ दुराचारी कपिल क्षुल्लक २४३ दुराचारी तच्चनिय भिक्षु मान्न साने वाला राजा २५० मातुदर्शन से वत्स को स्तनाभिलाषा २५० पान-दर्शन से लाला-स्त्राव २५० प्रार्य गोविन्द उदायो नृपमारक भट्ट मधुर कौण्डइल प्रभव २६१ मेतार्य-ऋषि-धातक २६१ मृत गुरु के दांत तोड़ने वाला भिक्ष २६४ मुहणंतक के लिए गुरुधातक भिक्षु गुरु को मार निकालने वाला भिक्ष २६५ गुरुकोस्पर मारने वाला भिक्षु २६५ मथुरा का जउरा (यवन) राजा २६६ दुःशील भार्या और अध्यापक पति २६७ एक महिषोपालक पिंडार २६७ ज्ञान-स्तेन चारित्र स्तेन ००० मकारण प्रव्रज्या ل स्वपक्ष की स्वपक्ष में कषाय-दुष्टता ل २६५ ل ل ل परपक्ष की स्वपक्ष में कषाय दुष्टता द्रव्य-मूट काल-मूढ له Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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