Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 491
________________ मभाष्य बृगि निशीथ सूत्र जग. गदहिखाण अंडयमुज्भिय कप्पं तारणा असती अंतरिम व मज्भमिव अंदर मिति वा अंतरपल्ली हितं अंतरपल्ली लहुगा अंतररहितारगंतर अंत न होइ देयं अंतेउरं च तिविधं अंतो अलब्भमाणेसण मादीसु अंत होत्तस्स उ. तो आवरणमादी गहू खलु हिं तो मिली पुग् अती पर सक्खीयं अंतो बहि कच्छपुडादि तो बहि च धोत संतो बहि च भि ं तो बाँह ए लब्भनि J! 27 तो बहि व दड्ढ़े अंतो मरणे किरिसिया प्रतीवस्य बाहि अंतो बहि संजोयरम अंधकारो पदीवेरण अब केा तिऊणं अंगमादी पक्कं श्रा श्राइ पिसित महिगा श्राइष्ण मरणाइण्ण काइ मरणादणा 90 〃 बाइ लहुसए‍ " " Jain Education International ५२ ६१०६ १७४३ २३७६ १३४७ ४१६३ ३२८७ ८२५८ y=૪૪ २५१३ २३६१ ६०७० ८७३१ १५३४ १४०३ ३०४८ ११६१ ६१०२ ६१०५ २६६३ २०६५ 988E ५८५० ५६६६ १२३५. ६२०० ४८६८ ..܀܀ ܕ ܐ3 ܽ ६१६० • *? ८६६ १४७१ १४६१ ६०० २०४ 208 २७६६ ४८१६ ५३१२ ४०२० ४८२८ ८७१ 5508. ३५७२ १८६५ १८६७ १८६८ 2006 प्राइम बहुए आइ रयरलाई आइण्णे लहुमकारण उक्काए लहुगा आउग्गहवेत्ताओ प्राउ ज्जोवरण af " आउट्ट जरते मरुगाग प्राउट्टियावराहं उत्तपुव्वभणित उरपाउम्मी ग्राउं बलं च वढनि आऊ अगणी वाळ प्राऊ नेऊ वाऊ आस विसंवादे आकड्डगामाकसणं आकपिता रिमितं आकंपिया गिमित्त रण आगम गम कालगते आगमसुयववहारी प्रागमिय परिहरता आगररणदी कुडंगे अगर पल्लीमादी आगंतागारादिसु प्रागंतागारादी आगंतागा रेसु " आगंतारागारे प्रागंतारादासु प्रागंतु ग्रहाकड आगंतु एतरो वा श्रागंतुसु पुव्यं आगंतुंग तज्जाता आगंतु तज्जाया श्रागंतुगं तु वेज्जं श्रागंतुगारिण तारण य For Private & Personal Use Only ६०७ ६०५ २५१० ६०२ ५३४० २१८५ ५२२ ५२०७ ५३४४ ६१७४ ६१३३ २११७ ३३६५ २४०५ ३१३० २६६२ ६०१४ २६६४ ४४०६ ४५६० ६३६३ ४७८६ ५८५६ ५८६० २३१२ ४६५३ १४४६ १४५८ २३४२ १४३८ ५५६२ १८६२ ३२४४ ४६५२ ४६५५ २४३५ ५८८३ ४५७ ६३६४ २४१५ २५६० २५८७ २४१८ २७४२ ६२७ ४०३४ ४०३५ ४२६६ ४०५८ www.jainelibrary.org

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