Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

View full book text
Previous | Next

Page 509
________________ सभाष्यचूरिंग निशीथसूत्र ४७५ कारणजाए अवहडो कारणतो प्रविधीए कारणपडिसेवा विय कारणामकारग वा कारणमकारणेवा २७.६ १६६८ ४५६ ५०८४ कालो समयादीयो कालो सझा य तहा कावालिए य भिक्खू कावालिए सरक्ख कासातिमातिजं पुवकाले काहीगा तरुणेसु ३६६२ काहीता तरुगोसू २८२२ ५१८७ ܪܟ ܘ ܯ ३५०६ २०६६ ४६६७ ३२६८ १०६१ २१७१ ६००६ २५८० २५७६ २२७६ २५६७ ३१४३ ६१३२ ५०७७ ३६२२ ५०१३ ५२२५ ५२१६ ५२२४ ५२१५ १३११ २८८४ ६५६६ २०७२ २७७५ १७५६ ४४२४ ३००५ ६३०४ ६२६ ५८६ ३७७८ ४५६२ ६१५२ ३८६१ २७८१ १८६५ कारणमणुण्ण-विधिमा कारगलिंगे उड्ढोरगत्तणा कारणाणुपालगारण कारिणए वि य दुविधे कारणे उद्धगहिते कारणे विलग्गियब्वं कारणे सपाहुडि-ठित्ता कारणे हिंसित मा कारावरणमाभियोगो कालग्गं सव्वद्धा कालगतम्मि सहाये कालचउक्कं उक्कोसएण कालचउक्के णाणत्तगं कालदुगातीतादीरिण कालसभावाणुमतो कालातिक्कमदाणे कालादीते काले कालियपुन्वगते वा कालियमयं च इसिभासियागि कालुट्ठाई कालनिवेमी कालुट्ठादीमादिसु कालेण प्रपत्तागणं कालेरणं पुरण कप्पति कालेणेवतिएणं काले अपहुप्पते काले उ अरण्याते काले उ सुयमारणे काले गिलाण वावड काले तिपोरिसष्ट्र व काले वा घेच्छामो काले विणये बहुमाने काले सिहि-णंदिकरे कालो दव्यऽवतरती ५४२५ काहीया तरुणेसु किड्ड तुयट्ट प्रणाचार कितिकम्म च पडिच्छति कितिकम्मं तु पडिन्छति कितिकम्मस्स य करणे किमणभन्वं गिण्हसि किरियातीयं रणातु किवणेसु दुबलेसु य किह उप्पण्णो गिलामो किह भिक्खू जयमाणो किह भूतारगुवघातो कि प्रागतऽत्थ ते बिति किं उवघातो धोए कि उवघातो हत्थे किं कारण चंकमणं कि कारणं चमढरणा कि काहामि वरामो कि काहिं ति ममेते कि काहिति मे वेज्जो कि गीयत्थो केवल किं च मए अट्ठो भे? कि दमग्रो हं भंते कि पत्तो गो भुत्त कि पुरण प्रणगारसहायएरण कि पुग्ण जगजीवसुहावहेग कि पेच्छह ? सारिच्छं कि मण्णे गिसिगमणं कि वच्चसि वासंते किं वा कहेज्ज छारा किंचरण पट्टा एपहि १०१४ ३८८८ १६७५ ३८७ ५५२३ ६१८८ ५६७४ ५६६२ ३२३७ ५६७३ ३२३५ २३६७ ४१६० १५८४ ३०८३ ३१०२ ४२६२ १८८५ ३७६४ १९७५ ९६१ ४१०७ ४१०५ ३८.. १६३२ २९८३ १७४१ ३०७६ ४८२० १७८९ ५०३४ ३८६० ३६१३ ५६४२ १६८८ ५६३८ ३०२ ४४८२ २४७२ ४२६० ४८०५ ५२८२ ६३३ २६५४ ६१०१ १२६० ३७१२ ३०४४ २२६३ १०१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608