Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications

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Page 505
________________ समाष्यपूणि निशीथसूत्र एवं पि पठायंतो एवं पि कीरमाणे एवं पि परिवता एवं पीतिविवी एवं पुच्छासुद्धे एवं फासूमफा एवं बारसमासा एवं बारसमासे एवं भगतो दोसो एवं वितिमिच्छे वी एवं वि मग्गमाणे " 17 एवं सहकुलाई एवं सरण व मुंज चिप्पि एवं सतिराण वि एवं सिद्धं ग्रहणं एवं सुतगिबंधो एवं सुतं फलं एस गमो वंजरणमीसएरा एस तवं पडिवज्जति "P 17 एस तु पलंबहारी एस पत्थो जोगो एसमरणाइण्णा खलु एस विही तु विसज्जिते एसरण दोसे व कते एसरणमादी भिण्णो एसरणमादी रुद्दादि एसा श्रविही भरिणता एसा भाइण्णा खलु एसा उ श्रगीयत्ये एसा उ दप्पिया एसा खलु मोहे एसा विही विसज्जिते Jain Education International २७४३ ३००७ ४१८८ ४१७५ ૧૦૪૪ ४०६१ ६५५२ २८०४ २६५० २६१८ ७५८ ७६७ ८४३ १६३४ ८२७ ३५३६ ४५४० १२२३ ४१७१ ५२०८ ४२८ १८८६ २८८० ६५६५ ४७८२ ५६६१ १४७८ ५४६० १६४४ ४३२ ४४३ ४०८४ १४६२ ६३५८ ૪૨૪ ५१६७ ५५३३ ५४८१ १६१० ५३०७ ५२६४ ६४३ १८१८ ५७७० ५८१५ १५८६ ५२६० .२५६१ ५५६७ 31 "" ६२३ ५४३४ १६०३ १८४१ एसा मुत्त प्रदत्ता एसेव कमोरियमा " एमेत्र गमो यमा 71 " #1 "" 17 "} "F "" "0 " " " " " " " 11 " 21 " एसेव गमो नियमा " 18 एसेव चतुह पडिसेवरणातु एसेव यदि तो For Private & Personal Use Only ६२५२ སྟངས ५६० ६०० ६१३ ८३५ ८४४ ६६८ १००८ १२९७ १३०६ १४८८ १७७७ १६६५ २०२८ २३०७ २५२५ २६४० ३०६४ ३२६८ ૪૬૬૪ ૪૬૨૭ ४८६० ४८६६ ५१६३ ५२२३ ५८७१ ५६३१ LEY ६६६४ १७८२ २८५४ ३३१० ५५५१ ६६६५ ६१ ४८६६ ६५०८ ४७१ ४२४० ܐ ४६०६ ३७६६ १००० १०३३ ३८०३ ༢༢ང་ ५४५१ www.jainelibrary.org

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