Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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सभाष्य-चूणिके निशीथमूत्रे
[ मूत्र-५३
भिक्खुम्मि गीते थिरे कयकरणे प्रणवटुं, अकयकरणे छेदो। प्रथिरे कयकरणे छेदो, प्रथिरे अकय. करणे छग्गुरू । भिक्खुम्मि अगीते थिरे कय करणे छग्गुरु, प्रकय करणे छल्लहू, अथिरे कतकरणे छल्लहू, अकयकरणे चउगुरू । एस एक्को आदेसो।।
इमो बितियो - पारचियप्रावतीए चेव करणे अ'यरिए अणबटुं, अकयकरणे मूलं, उवज्झाए कयकरणे मूलं, अकयकरणं दो । एवं अड्डोवतीए णेयःवं जाव भिक्खुम्मि अगीते अथिरे अकथकरणे चउलहुन । एवं प्रणवढे वि दो प्रादेसा भाणि कव्वा । णवरं - तेसि अंता च उलहुं मासगुरु य । एत्थ वि गिरवेक्ने अणवट्ठासंभवतो सुगं। इदाणिं मूलं -
सव्वेसि अधिसिट्ठा, आवत्ती तेण पढमता मूलं ।
सावेक्खे गुरुमूलं, कतमकते छेदमादी तु ॥६६५५।।
सव्देसि गिरवेकवादीणं मूलं प्रावणा: तत्थ जे हिरवेक्खा ते जं चेव श्रावन्ना तं चेव दिजइ, जे ग कारणेणं ते णिग्णुग्गहा । सावेक्वाणं पुण दाणे इमो विही णायवो -
पावेक्खस्स प्रायरियस्स कयकरणस्स मूलं, अकयकरणस्स छेदो । उज्झायस्स कयकरणम्स छेदो, प्रयकरणे छग्गुरु । भिवखुस्स अभिगयस्स थिरस्स कयक रणस्स छग्गुरुता, अकयकरणस्स छल्लहुया । प्रथिरस्स कयकरणस्स छल्लहप्रा, तस्सेवाकय करणस्स चउगुरुगा।
प्रणभिगयस्स थिरस्त कय करणम्स च उगुरुगा. अकयकरणस्स च उलहुप्रा । प्रथि रस्स कयकरणस्स च उलहुआ, तस्सेव प्रयकरणस्स मासगुरु । मूलमावण्णो एवं मासगुरू ठाति ।
छेदावण्णे छेदःनो प्राढत्तं एतेसु चेव पुरिसठाणेसु अड्डोवतीए मासलहुए ठाति । छग्गुरुगातो गुरुए भिन्नमासे ठाति ।
चउलहुअातो छल्लहुए मासे ठाति । चउगुरुग्रामो गुरुए वीसरा इंदिए ठाति । चउलहप्रातो वीसराईदिए लहुए ठाति ।
मासगुरुग्रामो पण्णरसराईदिए गुरु ठाति । मासलहुअाग्रो परमराइदिए लहुए ठति । भिन्नमासारुपातो दसराईदिए गुरुए ठाति । भिण्णमासलातो दसराइं दिए लहुए ठाति वीसरायगुरुप्रातो पचराइदिए गुरुए ठाइ । वीसरायलहुप्रातो पंवरायलहुए ठाति । पण्णरसरायगुरुप्रातो दसमे ठाति । पण्णरसरायलहुप्रातो अट्ठमे ठाति । दसराइंदिएगुरुप्रातो छठे ठाति । दसराईदियलहुप्रातो चउत्थे ठाति । पंचराइंदियातो प्रायंबिले ठोति । एवं पंचराइंदियल हुअातो एक्कासणते ठाति । दसमातो पुरिमड्ढे ठाति । अट्ठमातो निव्वतते ठाति । एवं अड्डोक्कतीए सव्वं णेयव्वं ।
एत्थ एक्के प्रायरिया - चरिमाढत्तं अड्डोक्कतोए लहुपणए ठाति दसमादिपदे ण ठायति । अण्णे चरिमाढतं अड्डोवकंतीए पणगोवरि दसम छ?-च उत्था जाव एएभत्तपुरिमड्ड जाब णिवितिए ठायंति ॥६६५५।।
आदेशान्तरप्रदर्शनार्थमिदमाह -
पढमस्स होति मूलं, बितिए मूलं च छेद छग्गुरुगा।
जयणाए होति सुद्धा, अजयण गुरुगा तिविहभेदो ॥६६५६।। • पढमो ति - जिण कमियो, तस्स अववादाभावा मूलं एवं । "बितितो" त्ति - सावेक्खो कयकरणो पायरिया, तस्स मूलावत्तीए मूलं चेव । “वा" विकल्पे । छेदो वा भवति ।
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