Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५५ जंबूद्वीपद्वारसंख्यादि निरूपणम् ५१ वरवारिपरिपूर्णाः-सुगन्धियुक्त स्वच्छ जलपरिपूर्णा इत्यर्थः 'चंदणकयचच्चागा' चन्दनकृतचर्चाकाः चन्दनकृतोपरागा इत्यर्थः 'आविद्ध कंठे गुणा' आविद्धःआरोपितः कण्ठे-ग्रीवायां गुणो रक्तसूत्ररूपो येषु ते तथा । 'पउमुप्पलपिहाणा' पद्मोत्पलपिधानाः, पद्ममुत्पलं च यथायोगं पिधानं येषां ते तथा, 'सवरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा' सर्वरत्नमया अच्छाः-स्फटिकवदति स्वच्छाः यावत् प्रतिरूपाः, अर्थः प्राग्वत् । 'महया महया महिंदकुंभसमाणा पण्णत्ता समणाउसो' महान्तो महान्तो महेन्द्रकुम्भसमानाः कुम्भानामिन्द्र इति इन्द्रकुम्भः महांश्चासौ इन्द्रकुम्भश्चति महेन्द्रकुम्भस्तस्य समाना:-तुल्या महाकलशप्रमाणाः प्रज्ञता:-कथिता हे श्रमण ! हे आयुष्मन् ! 'विजयस्सणं दारस्स उभयो पासिं' विजस्य खलु द्वारस्योभयोः पार्श्वयोरेकैक नैषेधिकी सद्भावात् , 'दुहओ णिसी. हियाए' द्विधातो नैषेधिक्याम्, 'दो दो णागदंतपरिवाडीओ' द्वे द्वे नागदन्त इन कलशों के ऊपर चन्दन का लेप हो रहा है 'आविद्ध कंठेगुणा' इनके कंठों में रक्त डोरा-मौली-बांधा गया है। 'पउमुप्पलपिहाणा' इनके मुखपर पद्म और ऊत्पलका ढक्कन रखा गया है 'सव्वरयणामया अच्छा सण्हा जाव पडिरूवा' ये चन्दनकलश सर्वात्मनारत्नों से जटित है आकाश और स्फटिकमणि के जैसे अतिशुभ्र हैनिर्मल है और इलक्षण आदि विशेषणों से लेकर प्रतिरूप तक के समस्त विशेषणों से विशेषित है । 'महता२ महिंद कुंभसमाणापण्णत्ता समणाउसो' हे श्रमण आयुष्मन् ! ये चन्दनकलश विशाल बडे बडे महेन्द्र कुम्भ के समान कहे गये है अर्थात् महाकलश के जैसे प्रकट किये गये है 'विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहतो णिसीहियाए दो दो णागदंतपरिवाडीओ विजयद्वार के दोनों पार्श्व में अर्थात् दोनों सुगध युत ४ म२वामा मावेस छ. 'चंदणकयचच्चागा' से सशानी ५२ हनन से५ ४२वामा मावेश छ. आविद्ध कंठेगुणा' तेना i ane गनी हो। मधेिस छे. 'पउमुप्पलपिहाणा' तेना भुपनामा ५५ मने पसनु sixey रामे छे. 'सव्वरयणामया अच्छा सहा जाव पडिरूवा' २॥ न ४१२ સર્વ પ્રકારના રત્નોથી જડેલ છે. આકાશ અને સફટિક મણિ રત્ન જેવા અત્યંત સફેદ છે. નિર્મલ છે. અને શ્લફણ વિગેરે વિશેષણોથી લઈને અભિરૂપ પ્રતિરૂપ सुधिना सा विशेष! पण छे. 'महता महता महिंदकुभसमाणा पणत्ता समणाउसो' में श्रम आयुष्मन् २॥ यदन मोटा मोटा महेन्द्र हुन स२॥ छे. अर्थात् ते भा४सशनी वा पानुस छ. विजयस्स णं दारस्स भोपासिं दुहतो णिसीहियाए दो दो गागदंतपरिवाडीओ' qिorय २ना सन्न
જીવાભિગમસૂત્ર