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इसमें भाग्य और पुरुषार्थ का समन्वय है। पुरुषार्थ से कर्म में भी परिवर्तन हो सकता है, यह बात पूर्ण रूप से नष्ट है।
____कर्म की उदीरणा 'करण' से होती है। करण का अर्थ 'योग' है। योग के तीन प्रकार हैं—मन, वचन और काय।
उत्थान, बल, वीर्य आदि इन्हीं के प्रकार हैं। योग शुभ और अशुभ दोनों प्रकार का है। मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय रहित योग शुभ है और इनसे सहित योग अशुभ है। सत् प्रवृत्ति शुभ योग है और असत् प्रवृत्ति अशुभ योग है। सत् प्रवृत्ति और असत् प्रवृत्ति दोनों से उदीरणा होती है।०४ वेदना
गौतम ने भगवान् से पूछा-भगवान! अन्ययूथिकों का यह अभिमत है कि सभी जीव एवंभूत वेदना (जिस प्रकार कर्म बांधा है, उसी प्रकार) भोगते हैं क्या यह कथन उचित है?
भगवान् ने कहा-गौतम! अन्ययूथिकों का प्रस्तुत एकान्त कथन मिथ्या है। मेरा यह अभिमत है कि कितने ही जीव एवंभूत-वेदना भोगते हैं और कितने ही जीव अन-एवंभूत-वेदना भी भोगते हैं।
गौतम ने पुनः प्रश्न किया—भगवन् ! यह कैसे?
भगवान् ने कहा—गौतम! जो जीव किये हुए कर्मों के अनुसार ही वेदना भोगते हैं वे एवंभूत-वेदना भोगते हैं और जो जीव किये हुए कर्मों से अन्यथा वेदना भोगते हैं वे अन-एवंभूत-वेदना भोगते हैं। निर्जरा
आत्मा और कार्मण वर्गणा के परमाणु, ये दोनों पृथक् हैं। जब तक पृथक् रहते हैं तब तक आत्मा, आत्मा है और परमाणु-परमाणु है। जब दोनों का संयोग होता है तब परमाणु 'कर्म' कहलाते हैं
कर्म-प्रायोग्य-परमाणु जब आत्मा से चिपकते हैं तब वे कर्म कहलाते हैं। उस पर अपना प्रभाव डालने के पश्चात् वे अकर्म हो जाते हैं। अकर्म होते ही वे आत्मा से अलग हो जाते हैं। इस अलगाव का नाम निर्जरा है।
कितने ही फल टहनी पर पककर टूटते हैं तो कितने ही फल प्रयत्न से पकाये जाते हैं। दोनों ही फल पकते हैं किन्तु दोनों के पकने की प्रकिया पृथक्-पृथक् है। जो सहज रूप से पकता है उसके पकने का समय लम्बा होता है और जो प्रयत्न से पकाया जाता है उसके पकने का समय कम होता है। कर्म का परिपाक ठीक इस प्रकार होता है। निश्चित काल-मर्यादा से जोकर्म-परिपाक होता है वह निर्जरा विपाकी-निर्जरा कहलाती है। इसके लिए किसी ज्ञी प्रकार का नवीन प्रयत्न नहीं करना पड़ता इसलिए यह निर्जरा न धर्म है और न अधर्म है।
निश्चित काल-मर्यादा से पूर्व शुभ-योग के द्वारा कर्म का परिपाक होकर निर्जरा होती है, वह अविपाकी निर्जरा कहलाती है। यह निर्जरा सहेतुक है। इसका हेतु शुभ-प्रयास है, अतः धर्म है। आत्मा पहले या कर्म?
आत्मा पहले या कर्म पहले है? दोनों में पहले कौन है और पीछे कौन है? यह एक प्रश्न है।
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भगवती १।३। ३५
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