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द्वितीय अध्ययन]
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उवागच्छित्ता उप्पलाए कूडग्गाहिणीए उवणेइ । तए णं सा उप्पला भारिया तेहिं बहूहिं गोमंसेहि य सोल्लेहि य सुरं च-५ आसाएमाणी - ४ तं दोहलं विणेइ । तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी संपुण्णदोहला संमाणियदोहला विणीयदोहला वोच्छिन्नदोहला संपन्नदोहला तं गब्धं सुहंसुहेणं परिवहइ ।
१२ – तदनन्तर उस भीम कूटग्राह ने अपनी उत्पला भार्या से कहा— देवानुप्रिये ! तुम चिन्ताग्रस्त व आर्तध्यान युक्त न होओ, मैं वह सब कुछ करूँगा जिससे तुम्हारे इस दोहद की परिपूर्ति हो जायेगी। इस प्रकार के इष्ट, प्रिय, कान्त, मनोहर, मनोज्ञ वचनों से उसने उसे समाश्वासन दिया ।
तत्पश्चात् भीम कूटग्राह आधी रात्रि के समय अकेला ही दृढ कवच पहनकर, धनुष-बाण से सज्जित होकर, ग्रैवेयक धारण कर एवं आयुध प्रहरणों को लेकर अपने घर से निकला और हस्तिनापुर नगर के मध्य से होता हुआ जहाँ पर गोमण्डप था वहाँ पर आया, और आकर वह नागरिक पशुओं यावत् वृषभों में से कई एक के ऊधस्, कई एक के सास्ना- कम्बल आदि व कई एक के अन्यान्य अङ्गोपाङ्गों को काटता है और काटकर अपने घर आता है। आकर अपनी भार्या उत्पला को दे देता है । तदनन्तर वह उत्पला उन अनेक प्रकार के शूल आदि पर पकाये गये गोमांसों के साथ अनेक प्रकार की मदिरा आदि का आस्वादन, विस्वादन करती हुई अपने दोहद को परिपूर्ण करती है । इस तरह वह परिपूर्ण दोहद वाली, सम्मानित दोहद वाली, विनीत दोहद वाली, व्युच्छिन्न दोहद वाली व सम्पन्न दोहद वाली होकर उस गर्भ को सुखपूर्वक धारण करती है ।
१३ – तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। तए णं तेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया महया चिच्ची सद्देणं विघुट्टै विस्सरे आरसिए ।
तए णं तस्स दारगस्स आरसिय-सद्दं सोच्चा निसम्म हत्थिणाउरे नयरे बहवे नगरगोरूवा जव वसा य भीया तत्था तसिया उव्विग्गा सव्वओ समंता विप्पलाइत्था । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं नामधेज्जं करेन्ति' जम्हा णं अम्हं इमेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया महया चिच्ची सद्देणं विघुट्ठे विस्सरे आरसिए, तए णं एयस्स दारगस्स आरसियसद्दं सोच्चा निसम्म हत्थिणाउरे नयरे बहवे नगरगोरूवा जाव भीया तत्था तसिया उव्विग्गा, सव्वओ समंता विप्पलाइत्था, तम्हा णं होउ अम्हं दारए 'गोत्तासए' नामेणं ।
तणं से गोत्तास दारए उम्मुक्कबालभावे जाए यावि होत्था ।
१३ – तदनन्तर उस उत्पला नामक कूटग्राहिणी ने किसी समय नव-मास परिपूर्ण हो जाने पर पुत्र को जन्म दिया। जन्म के साथ ही उस बालक ने अत्यन्त कर्णकटु तथा चीत्कारपूर्ण भयंकर आवाज की । उस बालक के कठोर, चीत्कारपूर्ण शब्दों को सुनकर तथा अवधारण कर हस्तिनापुर नगर के बहुत से नागरिक पशु यावत् वृषभ आदि भयभीत व उद्वेग को प्राप्त होकर चारों दिशाओं में भागने लगे। इससे उसके माता-पिता ने इस तरह उसका नाम-संस्करण किया कि जन्म के साथ ही इस बालक ने 'चिच्ची' चीत्कार के द्वारा कर्णकटु स्वर युक्त आक्रन्दन किया, इस प्रकार के उस कर्णकटु, चीत्कारपूर्ण आक्रन्दन