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षष्ठ अध्ययन ]
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कितनों को हथकड़ियों बेड़ियों से, हडिबन्धनों से व निगडबन्धों से बद्ध करता है। कितनों के शरीर को सिकोड़ता व मरोड़ता है। कितनों को सांकलों से बांधता है, तथा कितनों का हस्तच्छेदन यावत् शस्त्रों से चीरता - फाड़ता है। कितनों को वेणुलताओं यावत् वृक्षत्वचा के चाबुकों से पिटवाता है।
कितनों को ऊर्ध्वमुख गिराकर उनकी छाती पर शिला व लक्कड़ रखवा कर उत्कम्पन्न (ऊपर नीचे) कराता है कि जिससे हड्डियाँ टूढ जाएँ।
कितनों के चर्मरज्जुओं व सूत्ररज्जुओं से हाथों और पैरों को बँधवाता है, बंधवाकर कुए में उल्टा लटकवाता है, लटकाकर गोते खिलाता है। कितनों का असिपत्रों यावत् कलम्बचीरपत्रों से छेदन कराता है और उस पर क्षार मिश्रित तैल से मर्दन कराता है।
कितनों के मस्तकों, कण्ठमणियों, घंटियों, कोहनियों, जानुओं तथा गुल्फों-गिट्टों में लोहे की कीलों को तथा बांस की शलाकाओं को ठुकवाता है तथा वृश्चिककण्टकों—बिच्छु के काँटों को शरीर में प्रविष्ट कराता है ।
कितनों के हाथ की अंगुलियों तथा पैर की अंगुलियों में मुद्गरों के द्वारा सूइयों तथा दम्भनों—–— दागने के शस्त्रविशेषों को प्रविष्ट कराता है तथा भूमि को खुदवाता है 1
कितनों का शस्त्रों व नेहरनों से अङ्ग छिलवाता है और दर्भों— मूलसहितकुशाओं, कुशाओं— मूलरहित कुशाओं तथा आर्द्रचर्मों द्वारा बंधवाता है । तदनन्तर धूप में गिराकर उनके सूखने पर चड़ चड़ शब्द पूर्वक उनका उत्पाटन कराता है ।
आचार का दुष्परिणाम
९ – तर णं से दुज्जोहणे चारगपालए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता एगतीसं वाससयाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा छट्टीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवमट्ठिइएस नेरइएस नेरइयत्ताए उववन्ने ।
९ – इस तरह वह दुर्योधन चारकपालक इस प्रकार की निर्दयतापूर्ण प्रवृत्तियों को अपना कर्म, विज्ञान व सर्वोत्तम आचरण बनाए हुए अत्यधिक पापकर्मों का उपार्जन करके ३१ सौ वर्ष की परम आयु भोगकर कालमास में काल करके छठे नरक में उत्कृष्ट २२ सागरोपम की स्थिति वाले नारकियों में नारक रूप में उत्पन्न हुआ।
१० -से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव महुराए नगरीए सिरिदामस्स रन्नो बन्धुसिरीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववन्ने । तए णं बन्धुसिरी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारगं पाया। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्ते बारसाहे इमं एयारूवं नामधेज्जं करेंति— 'होउ णं अम्हं दारगे नंदिसेणे नामेणं ।'
तणं से नंदिसेणे कुमारे पंचधाईपरिवुडे जाव परिवड्डइ । तए णं से नंदिसेणे कुमारे उम्मुक्कबालभावे जाव विहरइ, जोव्वणगमणुप्पत्ते जुवराया जाए यावि होत्था ।
तए णं से नंदिसेणे कुमारे रज्जे य जाव अंतेउरे य मुच्छिए इच्छइ सिरिदामं रायं जीवियाओ