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षष्ठ अध्ययन]
[७७ पत्थिए मणोगए संकप्पे ) समुप्पज्जित्था—'जइणं मम सिरिदामे राया एयमटुं आगमेइ, तए णं मम न नज्जइ केणइ असुभेणं कुमारेणं मारिस्सइत्ति। कट्ट भीए जेणेव सिरिदामे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिरिदामं रायं रहस्सियगं करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी
"एवं खलु सामी! नंदिसेणे कुमारे रज्जे य जावमुच्छिए इच्छइ तुम्मे जीवियाओ ववरोवित्ता सयमेव रज्जसिरि कारेमाणे पालेमाणे विहरत्तिए।'
तए णं से सिरिदामे राया चित्तस्स अलंकारियस्स एयमढे सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते जाव साह? नंदिसेणं कुमारं पुरिसेहिं गिण्हावेइ, गिण्हावित्ता एएणं विहाणेणं वझं आणवेइ।
"तं एवं खलु गोयमा! नन्दिसेणे पुत्ते जाव विहरइ।'
१२-परन्तु कुछ ही समय के बाद चित्र अलंकारिक के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि यदि किसी प्रकार से श्रीदाम नरेश को इस षड्यन्त्र का पता लग गया तो न मालूम वे मुझे किस कुमौत से मारेंगे। इस विचार के उद्भव होते ही वह भयभीत हो उठा और एकान्त में गुप्त रूप से जहाँ महाराज श्रीदाम थे, वहाँ पर आया। एकान्त में दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अञ्जलि कर विनयपूर्वक इस प्रकार बोला
'स्वामिन् ! निश्चय ही नन्दिषेण कुमार राज्य में आसक्त यावत् अध्युपपन्न होकर आपका वध करके स्वयं ही राज्यलक्ष्मी भोगना चाह रहा है।'
तब श्रीदाम नरेश ने चित्र अलंकारिक से इस बात को सुनकर, उस पर विचार किया और अत्यन्त क्रोध में आकर नन्दिषेण को अपने अनुचरों द्वारा पकड़वा कर इस पूर्वोक्त विधान—प्रकार से मार डालने का राजपुरुषों को आदेश दिया।
भगवान् कहते हैं—'हे गौतम! नन्दिषेण पुत्र इस प्रकार अपने किये अशुभ पापमय कर्मों के फल को भोग रहा है।' नन्दिषेण का भविष्य
'नन्दिसेणे कुमारे इओ चुए कालमासे कालं किच्चा कहिंगच्छिहिइ ? कहिं उववन्जिहिइ?'
'गोयमा! नन्दिसेणे कुमारे सट्ठिवासाइं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए संसारो तहेव।
___ तओ हत्थिणाउरे नयरे मच्छत्ताए उववजिहिइ।से णं तत्थ मच्छिएहिं वहिए समाणे तत्थेव सेट्टिकुले पुत्तत्ताए पच्चयाहिइ। बोहिं सोहम्मे कप्पे महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ, परिनिव्वाहिइ, सव्वदुक्खाणं अंतं करेहिइ।'
निक्खेवो।
गौतम स्वामी ने भगवान् से पूछा कि-भगवन् ! नन्दिषेण कुमार मृत्यु के समय में यहां से काल करके कहां जायेगा? कहाँ उत्पन्न होगा?