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षष्ठ अध्ययन
धनपति १-छट्ठस्स उक्खेवो। १-छठे अध्याय की प्रस्तावना भी पूर्ववत् ही समझ लेनी चाहिए।
२–कणगपुरं नयरं। सेयासोयं उज्जाणं। वीरभद्दो जक्खो। पियचंदो राया। सुभद्दा देवी। वेसमणे कुमारे जुवराया। सिरीदेवी पमोक्खाणं पंचसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं। तित्थयरागमणं। धणवई जुवरायपुत्ते जाव पुव्वभवो। मणिवया नयरी। मित्तो राया। संभूतिविजए अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे।
निक्खेवो।
२—हे जम्बू! कनकपुर नाम का नगर था। वहाँ श्वेताशोक नामक एक उद्यान था। वहाँ वीरभद्र नाम के यक्ष का यक्षायतन था। कनकपुर का राजा प्रियचन्द्र था, उसकी रानी का नाम सुभद्रा देवी था। युवराज पदासीन पुत्र का नाम वैश्रमण कुमार था। उसका श्रीदेवी प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ था। किसी समय तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी पधारे। युवराज के पुत्र धनपति कुमार ने भगवान् से श्रावकों के व्रत ग्रहण किए यावत् गौतम स्वामी ने उसके पूर्वभव की पृच्छा की। उत्तर में भगवान् ने कहा
धनपति कुमार पूर्वभव में मणिचयिका नगरी का राजा था। उसका नाम मित्र था। उसने संभूतिविजय नामक अनगार को शुद्ध आहार से प्रतिलाभित किया यावत् इसी जन्म में वह सिद्धिगति को प्राप्त हुआ।
निक्षेप–उपसंहार भी पूर्ववत् समझना चाहिये।
विवेचन—प्रस्तुत अध्ययन में धनपतिकुमार ने भी सुबाहुकुमार की ही तरह पूर्वभव में सुपात्र दान से मनुष्य आयुष्य का बन्ध किया। भगवान् महावीर स्वामी के पास क्रमशः श्रावक धर्म व अन्त में मुनि धर्म की दीक्षा लेकर कर्मबन्धनों को तोड़कर मोक्ष प्राप्त किया।
इस भव व पूर्वभव में नामादि की भिन्नता के साथ-साथ सुबाहुकुमार व धनपति कुमार के जीवन में इतना ही अन्तर है कि सुबाहुकुमार देवलोकों में जाता हुआ और मनुष्य-भव प्राप्ति करता हुआ अन्त में महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा जबकि धनपति कुमार इसी जन्म में निर्वाण को उपलब्ध हो गया।
॥षष्ठ अध्ययन समाप्त।