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सप्तम अध्ययन
महाबल १–सत्तमस्स उक्खेवो। १—सातवें अध्याय का उत्क्षेप पूर्ववत् ही समझ लेना चाहिये।
२ महापुरं नयरं। रत्तासोगं उज्जाणं।रत्तपाओ जक्खो।बले राया।सुभद्दा देवी।महब्बले कुमारे।रत्तवईपामोक्खाणं पंचसयाणं रायवरकन्नगाणं पाणिग्गहणं।तित्थयरागमणंजाव पुव्वभवो। मणिपुरं नयरं। नागदत्ते गाहावई। इन्ददत्ते अणगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। निक्खेवो।
२—हे जम्बू! महापुर नामक नगर था। वहाँ रक्ताशोक नाम का उद्यान था। उसमें रक्तपाद यक्ष का आयतन था। नगर में महाराज बल का राज्य था। सुभद्रा देवी नाम की उसकी रानी थी। महाबल नामक राजकुमार था। उसका रक्तवती प्रभृति ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह किया गया।
उस समय तीर्थंकर भगवान् श्री महावीर स्वामी पधारे। तदनन्तर महाबल राजकुमार का भगवान् से श्रावकधर्म अङ्गीकार करना, गणधर देव का भगवान् से उसका पूर्वभव पूछना तथा भगवान् का प्रतिपादन करते हुए कहना
गौतम ! मणिपुर नाम का नगर था। वहाँ नागदत्त नाम का गाथापति रहता था। उसने इन्द्रदत्त नाम के अनगार को पवित्र भावनाओं से निर्दोष आहार का दान देकर प्रतिलाभित किया तथा उसके प्रभाव से मनुष्य आयुष्य का बन्ध करके यहाँ पर महाबल के रूप में उत्पन्न हुआ। तदनन्तर उसने श्रमणदीक्षा स्वीकार कर यावत् सिद्धगति को प्राप्त किया। निक्षेप उपसंहार भी पूर्ववत् जानना चाहिये।
॥ सप्तम अध्ययन समाप्त॥