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नवम अध्ययन]
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भगवान् महावीर ने कहा— हे गौतम! देवदत्ता देवी ८० वर्ष की परम-आयु भोग कर कालमास में काल करके इस रत्नप्रभा नामक प्रथम पृथिवीनरक में नारक पर्याय में उत्पन्न होगी। शेष संसारभ्रमण पूर्ववत् करती हुई अर्थात् प्रथम अध्ययनगत मृगापुत्र की भांति यावत् वनस्पति अन्तर्गत निम्ब आदि कटुवृक्षों तथा कटुदुग्ध वाले अर्कादि पौधों में लाखों बार उत्पन्न होगी । तदनन्तर वहाँ से निकलकर गङ्गपुर नगर में हंस रूप से उत्पन्न होगी । वहाँ शाकुनिकों द्वारा वध किए जाने पर वह गंगपुर में ही श्रेष्ठिकुल में पुत्ररूप में जन्म लेंगी। वहाँ उसका जीव सम्यक्त्व को प्राप्त कर सौधर्म नामक प्रथम देवलोक में उत्पन्न होगा। वहाँ से च्युत होकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा। वहाँ चारित्र ग्रहण कर यथावत् पालन कर सिद्धि को प्राप्त करेगा। सर्व कर्मों से मुक्त होगा।
निक्षेप श्री सुधर्म स्वामी ने उपसंहार करते हुए कहा- 'हे जम्बू ! निर्वाण प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने नौवें अध्ययन का यह अर्थ कहा है।'
॥ नवम अध्ययन समाप्त ॥