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[विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध ७–तत्पश्चात् किसी समय राजा महासेन कालधर्म को प्राप्त हुए। (आक्रन्दन, रुदन, विलाप करते हुए) राजकुमार सिंहसेन ने नि:सरण (शवयात्रा निकाली) तत्पश्चात् राजसिंहासन पर आरूढ़ होकर राजा बन गया।
८—तए णं से सीहसेणे राया सामाए देवीए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अवसेसाओ देवीओ नो आढाइ, नो परिजाणाइ।अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे विहरइ।
तए णं तासिं एगूणगाणं पंचण्हं, देवीसयाणं एगूणाई पञ्चमाईसयाई इमीसे कहाए लट्ठाई समाणाइं एवं खलु सीहसेणे राया सामाएदेवीए मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अम्हं धूयाओ नो आढाइ, नो परिजाणाइ, अणाढायमाणे, अपरिजाणमाणे विहरइ। तं सेयं खलु अम्हं सामं देविं अग्गिप्पओगेण वा विसप्पआगेगेण वा, सत्थप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्तए, एवं संपेहेंति, संपेहित्ता सामाए देवीए अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणीओ विहरान्ति।'
८—तदनन्तर महाराजा सिंहसेन श्यामादेवी में मूर्च्छित, गृद्ध, ग्रथित व अध्युपपन्न होकर अन्य देवियों का न आदर करता है और न उनका ध्यान ही रखता है। इसके विपरीत उनका अनादर व विस्मरण करके सानंद समय यापन कर रहा है।
तत्पश्चात् उन एक कम पांच सौ देवियों रानियों की एक कम पांस सौ माताओं को जब इस वृत्तान्त का पता लगा कि-'राजा सिंहसेन श्यामादेवी में मूछित, गृद्ध, ग्रथित व अध्यपुपन्न होकर हमारी कन्याओं का न तो आदर करता है और न ध्यान ही रखता है, अपितु उनका अनादर व विस्मरण करता है; तब उन्होंने मिलकर निश्चय किया कि हमारे लिये यही उचित है कि हम श्यामादेवी को अग्नि के प्रयोग से, विष के प्रयोग से अथवा शस्त्र के प्रयोग से जीवन रहित कर (मार) डालें। इस तरह विचार करती हैं
और विचार करने के अनंतर अन्तर (जब राजा का आगमन न हो) छिद्र (राजा के परिवार का कोई व्यक्ति न हो) की प्रतीक्षा करती हुई समय बिताने लगीं।'
९—तए णं सा सामादेवी इमीसे कहाए लट्ठा समाणी एवं वयासी—'एवं खलु, सामी! एगूणगाणं पंचण्हं सवत्तीसयाणं एगूणगाइं पंचमाइसयाई इमीसे कहाए लद्धट्ठाई समाणाई अन्नमन्नं एवं वयासी एवं खलु, सीहसेणे-जाव पडिजागरमाणीओ विहरन्ति। तं न नज्जड़ णं मम केणइ कुमारेण मारिस्संति, त्ति कटु भीया तत्था तसिया उव्विगा संजायभया जाव जेणेव कोवघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ओहयमणसंकप्पा जाव झियाइ।'
९—इधर श्यामादेवी को भी इस षड़यन्त्र का पता लग गया। जब उसे यह वृत्तान्त विदित हुआ तब वह इस प्रकार विचार करने लगी मेरी एक कम पांच सौ सपत्नियों (सौतों) की एक कम पांच सौ माताएं—'महाराज सिंहसेन श्यामा में अत्यन्त आसक्त होकर हमारी पुत्रियों का आदर नहीं करते, यह जानकर एकत्रित हुई और 'अग्नि, शस्त्र या विष के प्रयोग से श्यामा के जीवन का अन्त कर देना ही हमारे लिए श्रेष्ठ है' ऐसा विचार कर वे अवसर की खोज में हैं। जब ऐसा है तो न जाने वे किस कुमौत से मुझे मारें? ऐसा विचार कर वह श्यामा भीत, त्रस्त, उद्विग्न व भयभीत हो उठी और जहाँ कोपभवन था वहाँ आई। आकर मानसिक संकल्पों के विफल रहने से मन में निराश होकर आर्त्तध्यान करने लगी।