Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 158
________________ नवम अध्ययन] [१०५ शुद्ध होकर मित्र, ज्ञाति, निजक-स्वजन सम्बन्धियों का विपुल पुष्प, माला, गन्ध, वस्त्र, अलंकार आदि से सत्कार करता है, सन्मान करता है। सत्कार व सन्मान करके देवदत्ता-नामक अपनी पुत्री को स्नान करवाकर यावत् शारीरिक आभूषणों द्वारा उसके शरीर को विभूषित कर पुरुषसहस्रवाहिनी—एक हजार पुरुषों से उठाई जाने वाली शिविका-पालखी में बिठलता है। बिठाकर बहुत से मित्र व ज्ञातिजनों आदि से घिरा हुआ सर्व प्रकार के ठाठ-ऋद्धि से तथा वादिध्वनि-बाजे-गाजे के साथ रोहीतक नगर के बीचों बीच होकर जहाँ वैश्रमण राजा का घर था और जहाँ वैश्रमण राजा था, वहाँ आया और आकर हाथ जोड़कर उसे बधाया। बधा कर वैश्रमण राजा को देवदत्ता कन्या अर्पण कर दी। २२. तए णं से वेसमणे राया देवदत्तं दारियं उवणीयं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ विउलं असणं ४ उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता मित्त नाइ० आमंतेइ, जाव सक्कारेइ सम्माणेइ सक्कारित्ता सम्माणित्ता पूसनंदिकुमारं देवदत्तं च दारियं पट्टयं दुरुहेइ, दुरुहित्ता सेयापीएहिं कलसेहिं मज्जावेइ, मज्जावेत्ता वरनेवत्थाई करेइ, अग्गिहोमं करेइ, करेत्ता पूसनन्दिकुमारं देवदत्ताए दारियाए पाणिं गिण्हावेइ। . तए णं से वेसमणे राया पूसनंदिस्स कुमारस्स देवदत्तं दारियं सव्विड्ढिीए जाव रवेणं महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं पाणिग्गहणं कारेइ, कारेत्ता देवदत्ताए दारियाए अम्मापियरो मित्त जाव परियणं च विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेण वत्थगंधमल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ जाव पडिविसज्जेइ। ___तए णं पूसनन्दी कुमारे देवादत्तए सद्धिं उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धनाडएहि उवगिज्जमाणे जाव ( उवलालिज्जमाणे उवलालिज्जमाणे इडे सद्द-फरिसरस-रूव-गंधेविउले माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणे) विहरइ। २२—तब राजा वैश्रमण लाई हुई अर्पण की गई उस देवदत्ता दारिका को देखकर बड़े हर्षित हुए और हर्षित होकर विपुल अशनादिक तैयार कराया और मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी व परिजनों को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराया। उनका पुष्प, वस्त्र, गंध, माला व अलंकार आदि से सत्कार-सन्मान किया। तदनन्तर कुमार पुष्यनन्दी और कुमारी देवदत्ता को पट्टक पर बैठाकर श्वेत व पीत अर्थात् चाँदी और सोने के कलशों से स्नान कराते हैं। तदनन्तर सुन्दर वेशभूषा से सुसज्जित करते हैं। अग्निहोम-हवन कराते हैं। हवन कराने के बाद कुमार पुष्यनंदी को कुमारी देवदत्ता का पाणिग्रहण कराते हैं। तदनन्तर वह वैश्रमण नरेश पुष्यनंदी व देवदत्ता का सम्पूर्ण ऋद्धि यावत् महान वाद्य-ध्वनि और ऋद्धिसमुदाय व सन्मानसमुदाय के साथ विवाह रचाते हैं । तात्पर्य यह है कि विधि पूर्वक बड़े समारोह के साथ कुमार पुष्यनंदी और कुमारी देवदत्ता का विवाह सम्पन्न हो जाता है। तदनन्तर देवदत्ता के माता-पिता तथा उनके साथ आने वाले अन्य उनके मित्रजनों, ज्ञातिजनों निजकजनों, स्वजनों, सम्बन्धिजनों और परिजनों का भी विपुल अशनादिक तथा वस्त्र, गन्ध, माला और अलंकारादि से सत्कार करते हैं, सन्मान करते हैं; सत्कार व सन्मान करने के बाद उन्हें विदा करते हैं। राजकुमार पुष्यनंदी श्रेष्ठिपुत्री देवदत्ता के साथ उत्तम प्रासाद में विविध प्रकार के वाद्यों और जिनमें

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