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[विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध जेणेव सीहसेणे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति।
११–तदनन्तर महाराजा सिंहसेन ने श्यामादेवी से इस प्रकार कहा हे देवानुप्रिये ! तू इस प्रकार अपहृत मन वाली—हतोत्साह होकर आर्तध्यान मत कर। निश्चय ही मैं ऐसा उपाय करूंगा कि तुम्हारे शरीर को कहीं से भी किसी प्रकार आबाधा ईषत् पीड़ा तथा प्रबाधा विशेष बााधा न होने पाएगी। इस प्रकार श्यामा देवी को इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनोहर वचनों से आश्वासन देता है और आश्वासन देकर वहाँ से निकल जाता है। निकलकर कौटुम्बिक-अनुचर पुरुषों को बुलाता है और उनसे कहता है—तुम लोग जाओ और जाकर सुप्रतिष्ठित नगर से बाहर पश्चिम दिशा के विभाग में एक बड़ी कूटाकारशाला बनाओ जो सैकड़ों स्तम्भों से युक्त हो, प्रासादीय, अभिरूप तथा दर्शनीय हो अर्थात् देखने में अत्यन्त सुन्दर हो।
वे कौटुम्बिक पुरुष दोनों हाथ जोड़ कर सिर पर दसों नख वाली अञ्जलि रख कर इस राजाज्ञा को शिरोधार्य करते हुए चले जाते हैं। जाकर सुप्रतिष्ठित नगर के बाहर पश्चिम दिक् विभाग में एक महती व अनेक स्तम्भों वाली प्रासादिक, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप अर्थात् अत्यन्त मनोहर कूटाकारशाला तैयार करवाते हैं तैयार करवा कर महाराज सिंहसेन की आज्ञा प्रत्यर्पण करते हैं—अर्थात् कूटाकार शाला यथायोग्य रूप से तैयार हो गई, ऐसा निवेदन करते हैं।
१२–तए णं से सीहसेणे राया अन्नया कयाइ एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणाई पंचमाइसयाइं आमंतेइ। तए णं तासिं एगूणगाणं पंचण्हं देवीसयाणं एगूणाई पंचमाइसयाई सीहसेणेणं रन्ना आमंतियाइं समाणाइं सव्वालंकारविभूसियाइं जहाविभवेणं जेणेव सुपइढे नयरे, जेणेव सीहसेणे राया. तेणेव उवागच्छन्ति। तए णं से सीहसेणे राया एगणगाणं पंचदेवीसयाणं एगूणगाणं पंचमाइसयाणं कूडागारसालं आवासं दलयइ।
१२—तदनन्तर राजा सिंहसेन किसी समय एक कम पांच सौ देवियों (रानियों) की एक कम पांच सौ माताओं को आमन्त्रित करता है। सिंहसेन राजा का आमंत्रण पाकर वे एक कम पांच सौ देवियों की एक कम पांच सौ माताएं सर्वप्रकार से वस्त्रों एवं आभूषणों से सुसज्जित हो अपने-अपने वैभव के अनुसार सुप्रतिष्ठित नगर में राजा सिंहसेन जहाँ थे, वहाँ आ जाती हैं। सिंहसेन राजा भी उन एक कम पांच सौ देवियों की एक कम पाँच सौ माताओं को निवास के लिये कुटाकारशाला में स्थान दे देता है।
१३–तए णं से सीहसेणे राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी—'गच्छह णं तुबी देवाणुप्पिया! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवणेह, सुबहुं, पुष्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकारं च कूडागारसालं साहरह।'
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव साहरंति।
तए णं तासिं एगूणगाणं पंचण्हं देवीसायणं एगूणगाइं पंचमाईसयाइं सव्वालंकारविभूसियाई तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च पसण्णं च आसाएमाणाई गंधव्वेहि य नाडएहि य उवगीयमाणाई उवगीयमाणाई विहरन्ति।