Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 152
________________ [ ९९ नवम अध्ययन ] १० – तए णं से सीहसेणे राया इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे जेणेव कोवघरए, जेणेव सामा देवी, तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता सामं देविं ओहयमणसंकप्पं जाव पासइ, पासित्ता एवं वयासी— 'किं णं तुमं देवाणुप्पिए! ओहयमणसंकप्पा जाव झियासि ?' तणं सा सामा देवी सीहसेणेण रन्ना एवं वुत्ता समाणी उप्फेणउप्फेणियं सीहसेणं रायं एवं वयासी एवं खलु सामी ! मम एगूणपंचसवत्तिसयाणं एगूणपंचमाइसयाणं इमीसे कहाए लद्धट्ठाणं समाणाणं अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी एवं खलु सीहसेणे राया सामाए देवीए उवरिं मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे अम्हं धूयाओ नो आढाइ, नो परिजाणाइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे विहरइ, तं सेयं खलु, अम्हं सामं देविं अग्गिप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा सत्थप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्तए ।' एवं संपेहिंति, संपेहित्ता मम अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणीओ विहरंति । तं न नज्जइ णं सामी ! ममं केणइ कुमारेण मारिस्संति त्ति 'कट्टु, भीया जाव झियामि । १० – तदनन्तर सिंहसेन राजा इस वृत्तान्त से अवगत हुआ और जहाँ कोपगृह था और जहाँ श्यामदेवी थी वहाँ पर आया । आकर जिसके मानसिक संकल्प विफल हो गये हैं, जो निराश व चिन्तित हो रही है, ऐसी निस्तेज श्यामादेवी को देखकर कहा—हे देवानुप्रिये ! तू क्यों इस तरह अपहृतमन:संकल्पा होकर चिन्तित हो रही है ? सिंहसेन राजा के द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर दूध के उफान के समान क्रुद्ध हुई अर्थात् क्रोधयुक्त प्रबल वचनों से सिंह राजा के प्रति इस प्रकार बोली हे स्वामिन्! मेरी एक कम पांच सौ सपत्नियों (सौतों) की एक कम पांच सौ माताएं इस वृत्तान्त को (कि आप मुझमें अनुरक्त हैं) जानकर इकट्ठी होकर एक दूसरे को इस प्रकार कहने लगीं महाराज सिंहसेन श्यामादेवी में अत्यन्त आसक्त, गृद्ध, ग्रथित व अध्युपपन्न हुए हमारी कन्याओं का आदर सत्कार नहीं करते हैं। उनका ध्यान भी नहीं रखते हैं; प्रत्युत उनका अनादर व विस्मरण करते हुए समय-यापन कर रहे हैं, इसलिए अब हमारे लिये यही समुचित है कि अग्नि, विषय या किसी शस्त्र के प्रयोग से श्यामा का अन्त कर डालें । तदनुसार वे मेरे अन्तर, छिद्र और विवर की प्रतीक्षा करती हुई अवसर देख रही हैं। न जाने मुझे किस कुमौत से मारें ! इस कारण भयाक्रान्त हुई मैं कोपभवन में आकर आर्त्तध्यान कर रही हूँ । ११ – तए णं से सीहसेणे सामं देविं एवं वयासी' मा णं तुमं देवाणुप्पिए! ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि । अहं णं तहा जत्तिहामि जहा णं तव नत्थि कत्तो वि सरीरस्स आवाहे पवाहे वा भविस्स' ति कट्टु ताहिं इट्ठाहिं जाव (कंताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं वग्गूहिं ) समासासेइ। समासासित्ता तओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, स्दावेत्ता एवं वयासी—'गच्छह णं तुब्भे, देवाणुप्पिया! सुपइट्ठस्स नयरस्स बहिया एंगं महं कूडागारसालं करेह, अणेगखंभसयसंनिविट्टं जाव पासादीयं करेह, ममं एयमाणत्तियं पच्चष्पिणह । ' तए णं ते कोडुंबियपुरिसा करयल जाव पडिसुर्णेति, पडिसुणित्ता सुपइट्ठनयरस्स बहिया पच्चत्थिमे दिसीविभाए एगं महं कूडागार - सालं जाव करेंति अणेगखंभसयसंनिविट्टं जाव पासाइयं,

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