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[विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध (चाचियों को) उसके समक्ष ताड़ित करते हैं और मांस खिलते तथा रुधिरपान कराते हैं। इसी तरह तीसरे चत्वर पर आठ महापिताओं (पिता के ज्येष्ठ भ्राताओं-ताउओं) को, चौथे चत्वर पर आठ महामाताओं (पिता के ज्येष्ठ भ्राताओं की धर्मपत्नियों—ताइयों) को, पांचवें पर पुत्रों को, छठे पर पुत्रवधुओं को, सातवें पर जामाताओं को, आठवें पर लड़कियों को, नवमें पर नप्ताओं (पौत्रों व दोहित्रों) को, दसवें पर लड़के और लड़कियों की लड़कियों (पौत्रियों व दौहित्रियों) को, ग्यारहवें पर नसृकापतियों (पौत्रियों व दौहित्रियों के पतियों) को, बारहवें पर नातिनियों की नातिनियों को, तेरहवें पर पिता की बहिनों के पतियों (फूफाओं) को, चौदहवें पर पिता की बहिनों (बुआओं) को, पन्द्रहवें पर माता की बहिनों के पतियों (मौसाओं) को, सोलहवें पर माता की बहिनों को (मौसियों को),सत्रहवें पर मामा की स्त्रियों (मामियों) को, अठारहवें पर शेष मित्र, ज्ञाति, स्वजन सम्बन्धी और परिजनों को उस पुरुष के आगे मारते हैं तथा चाबुक के प्रहारों से ताड़ित करते हुए वे राजपुरुष करुणाजनक उस पुरुष को उसके शरीर से निकाले हुए मांस के टकडे खिलाते और रुधिर का पान कराते हैं। अभग्नसेन का पूर्वभव
९-तए णं से भगवं गोयमे तं पुरिसं पासइ पासित्ता इमे एयारूवे जाव समुप्पन्ने जाव तहेव निग्गए एवं वयासी—एवं खलु अहं णं भंते! तं चेव जाव से णं भंते! पुरिसे पुव्वभवे के आसी' जाव विहरइ।'
९—तदनन्तर भगवान् गौतम के हृदय में उस पुरुष को देखकर यह सङ्कल्प उत्पन्न हुआ यावत् पूर्ववत् वे नगर से बाहर निकले तथा भगवान् के पास आकर निवेदन करने लगे-भगवन् ! मैं आपकी आज्ञानुसार नगर में गया, वहां मैंने एक पुरुष को देखा यावत् भगवन् ! वह पुरुष पूर्वभव में कौन था? जो इस तरह अपने कर्मों का फल पा रहा है? अभग्नसेन का निन्नयभव
१०—एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवेदीवे, भारहे वासे पुरिमताल नाम नयरे होत्था, रिद्धथमियसमिद्धे । तत्थ णं पुरिमताले नयरे उदिए नामं राया होत्था, महया०२। तत्थ णं पुरिमताले निन्नए नामं अंडयवाणिए होत्था। अड्ढे जाव अपरिभूए, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणन्दे। तस्स णं निन्नयस्स बहवे पुरिसा दिनभइभत्तवेयणा कल्लाकल्लि कुद्दालियाओ य पत्थियपिडए यगिण्हंति, गिण्हित्ता पुरिमतालस्स नगरस्स परिपेरन्तेसु बहवे काइअंडए य घूइअंडए य पारेवइअंडए य टिट्टिभिअंडए य बगि-मयूरी-कुक्कुडिअंडए य अन्नेसिं च बहुणं जलयरथलयर-खहयरमाईंणं अंडाइं गेण्हंति, गेण्हेत्ता पत्थियपिडगाइं भरेंति, भरेत्ता जेणेव निन्नयए अंडवाणियए तेणामेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता निन्नयस्स अंडवाणियस्स उवणेति।
१०—इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! उस काल तथा उस समय इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के
औप. सूत्र-१ औप. सूत्र-१४
३. औप. सूत्र १४१ ४. तृतीय अध्ययन-४