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चतुर्थ अध्ययन
शकट जम्बूस्वामी की जिज्ञासा
१–उक्खेवो जड़ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, चउत्थस्सणं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते ? तओ णं सुहम्मे अणगारे जंबू-अणगारं एवं वयासी
१-जम्बूस्वामी ने प्रश्न किया—भन्ते! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने, जो यावत् निर्वाण-प्राप्त हैं, यदि दुःख विपाक के तीसरे अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ कहा तो भगवान् ने चौथे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है? तब सुधर्मा स्वामी ने जम्बू अनगार से इस प्रकार कहासुधर्मास्वामी का समाधान
२–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं साहंजणी णामं नयरी होत्था। रिद्धस्थिमियसमिद्धा। तीसे णं साजणीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए देवरमणे णामं उज्जाणे होत्था। तत्थ णं अमोहस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था, पोराणे। तत्थ णं साहंजणीए नयरीए महचंदे णामं राया होत्था, महयाहिमवंतमहंतमलयमंदरसारे। तस्स णं महचंदस्स रण्णो सुसेणे णामं अमच्चे होत्था। साम-भेय-दंडं-उपप्पयाणनीतिसुपउत्तनयविहण्णू निग्गह-कुसले।
तत्थ णं साहंजणीए नयरीए सुदरसिणा णामं गणिया होत्था। वण्णओ।
२—हे जम्बू! उस काल उस समय मं साहंजनी नाम की एक ऋद्ध-भवनादि की सम्पत्ति से सम्पन्न, स्तिमित स्वचक्र-परचक्र के भय से रहित तथा समृद्ध-धन-धान्यादि से परिपूर्ण नगरी थी। उसके बाहर ईशानकोण में देवरमण नाम का एक उद्यान था। उस उद्यान में अमोघ नामक यक्ष का एक पुरातन यक्षायतन था। उस नगरी में महचन्द्र नाम का राजा राज्य करता था। वह हिमालय के समान दूसरे राजाओं से महान् था। उस महचन्द्र नरेश को सुषेण नाम का मन्त्री था, जो सामनीति, भेदनीति, दण्डनीति और उपप्रदाननीति के प्रयोग को और न्याय नीतियों की विधि को जानने वाला तथा निग्रह में कुशल था।
उस नगर में सुदर्शना नाम की एक सुप्रसिद्ध गणिका-वेश्या रहती थी। उसका वर्णन (द्वितीय अध्याय में वर्णित कामध्वजा वेश्या के समान) जान लेना चाहिए।
३–तत्थ णं साहंजणीए नयरीए सुभद्दे णामं सत्थवाहे परिवसइ।अड्ढे । तस्स णं सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दा णामं भारिया होत्था, अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरा। तस्सणं सुभद्दसत्थवाहस्स पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए सगडे णामं दारए होत्था, अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरे।
३—उस नगरी में सुभद्र नाम का एक सार्थवाह रहता था। उस सुभद्र सार्थवाह की अन्यून—निर्दोष
१. देखिए द्वि.अ. सूत्र-३