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[विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध तए णं से दंडे 'तह' त्ति एयमटुं पडिसुणेइ। तए णं से दंडे बहू हिं पुरिसेहिं सन्नद्धबद्धवम्मियकवएहिं जाव गहियाउह-पहरणेहिं सद्धिं संपरिवुडे मगइएहिं फलएहिं जाव छिप्पतूरेणं वन्जमाणेणं महया जाव उक्किटुंजाव करेमाणे पुरिमतालं नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
२०–महाबल नरेश उन जनपदवासियों के पास से उक्त वृत्तान्त को सुनकर रुष्ट, कुपित और क्रोध से तमतमा उठे। उसके अनुरूप क्रोध से दांत पीसते हुए भोंहें चढ़ाकर अर्थात् क्रोध की साक्षात् प्रतिमा बनकर कोतवाल को बुलाते हैं और बुलाकर कहते हैं-देवानुप्रिय! तुम जाओ और शालाटवी नामक चोरपल्ली को लूट लो -नष्ट-भ्रष्ट कर दो और उसके चोरसेनापति अभग्नसेन को जीवित पकड़कर मेरे सामने उपस्थित करो!
महाबल राजा की इस आंज्ञा को दण्डनायक विनयपूर्वक स्वीकार करता हुआ, दृढ़ बंधनों से बंधे हुए लोहमय कुसूलक आदि से युक्त कवच को धारण कर आयुधों और प्रहरणों से लैस अनेक पुरुषों के साथ में लेकर, हाथों में फलक-ढाल बांधे हुए यावत् क्षिप्रतूर्य के बजाने से महान् उत्कृष्ट महाध्वनि एवं सिंहनाद आदि के द्वारा समुद्र की सी गर्जना करते हुए, आकाश को विदीर्ण करते हुए पुरिमताल नगर के मध्य से निकल कर शालाटवी चोरपल्ली की ओर जाने का निश्चय करता है।
२१–तए णं तस्स अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स चारपुरिसा इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा जेणेव सालाडवी चोरपल्ली, जेणेव अभग्गसेणे चोरसेणावई, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव परिग्गहियं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी—‘एवं खलु देवाणुप्पिया! पुरिमताले नयरे महाबलेण रण्णा महाभडचडगरेणं दण्डे आणत्ते—'गच्छह णं तुब्भे, देवाणुप्पिया! सालाडविं चोरपल्लिं विलुंपाहि, अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गेण्हाहि, गेण्हित्ता ममं उवणेहि।' तए णं से दंडे महया भडचडगरेणं जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
२१–तदनन्तर अभग्नसेन चोरसेनापति के गुप्तचरों को इस वृत्तान्त का पता लगा। वे सालाटवी चोरपल्ली में, जहां अभग्नसेन चोरसेनापति था, आये और दोनों हाथ जोड़कर ओर मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके अभग्नसेन से इस प्रकार बोले हे देवानप्रिय! पुरिमताल नगर में महाबल राजा ने महान् सुभटों के समुदायों के साथ दण्डनायक-कोतवाल को बुलाकर आज्ञा दी है कि-'तुम लोग शीघ्र जाओ, जाफ़र सालाटवी चोरपल्ली को नष्ट-भ्रष्ट कर दो—लूट लो और उसके सेनापति अभग्नसेन को जीवित पकड़ लो और पकड़कर मेरे सामने उपस्थित करो।' राजा की आज्ञा को शिरोधार्य करके कोतवाल योद्धाओं के समूह के साथ सालाटवी चोरपल्ली में आने के लिए रवाना हो चुका है।
___२२—तए णं से अभग्गसेणे चोरसेणावई तेसिंचारपुरिसाणं अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म पंचचोरसयाई सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी—एवं खलु देवाणुप्पिया! पुरिमताले नयरे महाबले जाव तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं तं दंडं सालाडवं चोरपल्लिं असंपत्ते अंतरा चेव पडिसेहित्तए।'
तए णं ताइं पंचचोरसयाइं अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स 'तह' त्ति जाव पडिसुणेति।