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द्वितीय अध्ययन
उज्झितक उत्क्षेप
१–'जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पनत्ते, दोच्चस्स णं भंते। अज्झयणस्स दुहविवागाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पन्नत्ते ?'
तए णं से सुहम्मे अणगारे जम्बु अणगारं एवं वयासी
जम्बूस्वामी ने प्रश्न किया—हे भगवन् ! यदि मोक्ष-संप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के प्रथम अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादित किया है तो हे भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने, जो यावत् मोक्ष को प्राप्त हुए हैं—विपाकसूत्र के द्वितीय अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ? इसके उत्तर में श्रीसुधर्मा अनगार ने श्री जम्बू अनगार को इस प्रकार कहा
२–एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नामं नयरे होत्था। रिद्धस्थिमियसमिद्धे। तस्स णं वाणियग्गामस्स उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए दूईपलासे नाम उजाणे होत्था। तत्थ णं दूईपलासे सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था। तत्थ णं वाणियग्गामे मित्ते नाम राया होत्था। वण्णओ। तस्स णं मित्तस्स रनो सिरी नामं देवी होत्था।वण्ओ। . २-हे जम्बू! उस काल तथा उस समय में वाणिजग्राम नामक एक नगर था जो ऋद्धि स्तिमितसमद्ध (ऋद्ध अर्थात गगनचम्बी अनेक बडे-बडे ऊँचें महलों वाला तथा अनेकानेक जनों से व्याप्त था तथा स्तिमित—अर्थात् स्वचक्र तथा परचक्र के भय से नितान्त रहित व समृद्ध अर्थात् धनधान्य आदि महाऋद्धियों से सम्पन्न) था। उस वाणिजग्राम के उत्तरपूर्व दिशा के मध्यभाग ईशानकोण में दूतिपलाश नामक उद्यान था। उस दूतिपलाश संज्ञक उद्यान में सुधर्मा नाम के यक्ष का यक्षायतन था। उस वाणिजग्राम नामक नगर में मित्र नामक राजा था जिसका वर्णन-प्रकरण पूर्ववत् ही जानना। उस मित्र राजा की श्री नाम की पटरानी थी। उसका वर्णन भी पूर्ववत् ही जानना।
३–तत्थ णं वाणियग्गामे कामझया नामं गणिया होत्था। अहीण जाव (पडिपुण्णपंचिंदियसरीरा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुम्माण-प्पमाण-पडिपुण्ण-सुजायसव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकाराकंत-पियदंसणा)सुरूवा, बावत्तरिकलापंडिया, चउसट्ठि-गणियागुणोववेया एगूणतीसविसेसे रममाणी, एकवीसरइगुणप्पहाणा बत्तीस-पुरिसोवयारकुसला, नवंगसुत्तपडिबोहिया,अट्ठारसदेसीभासाविसारया, सिंगारागारचारुवेसा, गीयरइगन्धव्व-नट्टकुसला संगय-गय-भाणिय-हसिय-विहिय-विलास-सललिय-संलाव-निउणजुत्तोवयारकुसला सुन्दरथण-जहण-वयण-कर-चरण-नयण-लावण्णविलासकलिया ऊसियज्झया सहस्सलंभा, विदिण्णछत्त-चामर-वालवीयणीया, कण्णीरहप्पयाया यावि होत्था। बहूणं गणियासहस्साणं आहेवच्चं जाव(पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणी पालेमाणी) विहरइ।