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[विपाकसूत्र - प्रथम श्रुतस्कन्ध
करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए अवचलमतुरिय-मसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता भायण - वत्थाई पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता भायणाई पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाई उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी— इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समा छट्ठक्खमण -पारणगंसि वाणियग्गामे नयरे उच्चनीयमज्झिमकुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए ।
'अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं !'
तणं भयवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ दुइपलासाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अतुरिमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओरियं सोहेमाणे सोहेमाणे ) जेणेव वाणियग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवगच्छित्ता उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे जेणेव रायमग्गे तेणेव ओगाढे ।
तत्थ णं बहवे हत्थी पासइ, सन्नद्धबद्धवम्मियगुडियउप्पीलियकच्छे, उद्दामिय घंटे, नानामणि- रयणविविहगेवेज्जउत्तरकं चुइज्जे, पडिकप्पिए, झय-पडागवरपंचामेल- आरूढहत्थारोहे, गहियाउहप्पहरणे ।
अन्ने य तत्थ बहवे आसे पासइ, सन्नद्धबद्धवम्मियगुडिए, आविद्धगुडें, ओसारियपक्खरे, उत्तरकं चुइय-ओचूल-मुहचण्डाधर-चामर-थासगपरिमंडियकडिए, आरूढ आसारोहे गहियाउहप्पहरणे।
अण्णे य तत्थ बहवे पुरिसे पासइ सन्नद्धबद्धवम्मियकवए, उप्पीलियसरासणपट्टिए पिणद्धगेवेज्जे, विमलकरबद्ध-चिंघपट्टे, गहियाउहप्पहरणे |
तेसिं च णं पुरिसाणं मज्झगयं एगं पुरिसं पासइ अवओडियबन्धणं उक्कित्तकण्णनासं नेहतुप्पियगत्तं वज्झ - करकडिजुयनियत्थं कंठेगुणरत्तमल्लदामं, चुण्णगुंडियगत्तं, चुण्णयं वज्झपाणपियं तिलं-तिलं चेव छिज्जमाणं कागणिमंसाई खावियंतं पावं, खक्खरगसएहिं हम्ममाणं, अणेगनरनारीसंपरिवुडं चच्चरे चच्चरे खंडपडहएणं उग्घोसिज्जमाणं । इमं च णं एयारूवं उग्घोसणं पडिसुणे - 'नो खलु देवाणुप्पिया! उज्जियगस्स दारगस्स केइ राया वा रायपुत्तो वा अवरज्झइ; अप्पणो से सयाई कम्माई अवरज्झंति !'
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६—उस काल तथा उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक जो कि तेजोलेश्या को संक्षिप्त करके अपने अन्दर धारण किये हुए हैं तथा बेले की तपस्या करते हुए भगवतीसूत्र में वर्णित जीवनचर्या चलाने वाले हैं, जैसे कि प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करके, दूसरे प्रहर
अनगार,
ध्यान और तीसरे प्रहर में मुखवस्त्रिका पात्र आदि का प्रतिलेखन - प्रमार्जन करके धीमी गति से भगवान् महावीर के पास गए। षष्ठ भक्त के पारणे की आज्ञा प्राप्त की। फिर वाणिजजग्राम नगर में उच्च नीच एवं १. पाठान्तर - बज्झकक्खडियजुयनियत्थं (मोदी)