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प्रथम अध्ययन] वह जहाँ भोजनालय था, वहाँ आती है और आकर वस्त्र-परिवर्तन करती है। वस्त्र-परिवर्तन कर काष्ठशकट-लकड़ी की गाड़ी को ग्रहण करती है और उसमें योग्य परिमाण में (विपुल मात्रा में) अशन, पान, खादिम व स्वादिम आहार भरती है। तदनन्तर उस काष्ठ-शकट को खींचती हुई जहाँ भगवान् गौतम स्वामी थे वहाँ आती है और भगवान् गौतम स्वामी से निवेदन करती है—'प्रभो! आप मेरे पीछे पधारें। मैं आपको मृगापुत्र दारक बताती हूँ।' (यह सुनकर) गौतम स्वामी मृगादेवी के पीछे-पीछे चलने लगे।
१७ तएणं सा मियादेवी तं कट्ठसगडियं अणुकड्डमाणी अणुकड्डमाणी जेणेव भूमिघरे तेणेव उवागच्छइ; उवागच्छित्ता चउप्पुडेणं वत्थेणं मुहं बंधइ। मुहं बंधमाणी भगवं गोयम एवं वयासी—'तुब्भ वि यणं भंते! मुहपोत्तियाए मुहं बंधह।' तए णं से भगवं गोयमे मियादेवीए एवं वुत्ते समाणे मुहपोत्तियाए मुहं बंधेइ।
१७–तत्पश्चात् वह मृगादेवी उस काष्ठ-शकट को खींचती-खींचती जहां भूमिगृह (भोरा) था, वहाँ पर आती है और आकर चार पड़ वाले वस्त्र से मुँह को बांधकर भगवान् गौतम स्वामी से इस प्रकार निवेदन करने लगी 'हे भगवन्! आप भी मुख-वस्त्रिका से मुँह को बांध लें।' मृगादेवी द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर भगवान् गौतमस्वामी ने भी मुख-वस्त्रिका से मुख को बांध लिया।
१८-तए णं सा मियादेवी परंमुही भूमिघरस्स दुवारं विहाडेइ।तए णं गंधे निग्गच्छइ-से जहानामए अहिमडे इ वा जाव [ गोमडे इ वा सुणहमडे इ वा मज्जारमडे इ वा मणुस्समडे इ वा महिसमडे इ वा मूसगमडे इ वा आसमडे इ वा हत्थिमडे इवा सीहमडे इ वा वग्घमडेइ इ वा विगमडे इवा दीविगमडे इ वा मयकुहिय-विणट्ठ-दुरभिवावण्ण-दुब्भिगंधे किमिजालाउलसंसत्ते असुइविलीण-विगय-बीभच्छदरिसणिज्जे भवेयारूवे सिया?
नो इणटेसमटे, एत्तो वि अणि?त्तराए चेव अकंततराए चेव अप्पियतराए चेव अमणुण्णतराए चेव अमणामतराए चेव] गन्धे पन्नत्ते! तए णं से मियापुत्ते दारए तस्स विउलस्स असण-पाणखाइम-साइमस्से गन्धेणं अभिमूए समाणे तंसि विउलंसि असण-पाण-खाइम-साइमंमि मुच्छिए तं विउलं असण-पाण खाइम-साइमं आसएणं? आहारेइ, आहारित्ता खिप्पमेव विद्धंसेइ, तओ पच्छा पूयत्ताए य सोणियत्ताए य परिणामेइतं पिय णं से पूयं च सोणियं च आहारेइ।
__ १८ तत्पश्चात् मृगादेवी ने पराङ्मुख होकर (पीछे को मुख करके) जब उस भूमिगृह के दरवाजे को खोला तब उसमें से दुर्गन्ध निकलने लगी। वह गन्ध मरे हुए सर्प यावत् (गाय, कुत्ता, बिल्ली, मनुष्य, महिष, मूषिक, अश्व, हाथी, सिंह, व्याघ्र भेड़िया, द्वीपिक आदि का कलेवर सड़ गया हो, गल गया हो, दुर्गंधित हो, जिसमें कीड़ों का समूह बिलबिला रहा हो, जो अशुचि, विकृत और देखने में भी बीभत्स हो, वह दुर्गन्ध ऐसी थी? नहीं, वह दुर्गन्ध) उससे भी अधिक अनिष्ट (अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ एवं अमनाम) थी।
अशन-रोटी, दाल, शाक भात आदि सामग्री अशन शब्द से अभिप्रेत है। पानी मात्र का ग्रहण पान शमसे किया गया है। द्राक्ष, पिस्ता, बादाम आदि मेवे व मिठाई आदि पदार्थ खाद्य हैं। पान, सुपारी, इलायची, लवंग आदि मुखवास योग्य पदार्थ स्वादिम शब्द से इष्ट हैं।