________________
प्रथम अध्ययन]
[१३ देखा और देखकर जातश्रद्ध—प्रवृत्त हुई श्रद्धा वाले भगवान् गौतम इस प्रकार बोले—'अहो भगवन् ! क्या कोई ऐसा पुरुष भी है कि जो जन्मान्ध व जन्मान्धरूप हो?'
भगवान् ने कहा—'हाँ, ऐसा पुरुष है!' 'हे प्रभो ! वह पुरुष कहाँ है जो जन्मान्ध व जन्मान्धरूप हो ?'
भगवान् ने कहा—'हे गौतम! इसी मृगाग्राम नगर में विजयनरेश का पुत्र और मृगादेवी का आत्मज मृगापुत्र नाम का बालक है, जो जन्मतः अन्धा तथा जन्मान्धरूप है। उसके हाथ, पैर, चक्षु आदि अङ्गोपाङ्ग भी नहीं हैं, मात्र उन अङ्गोपाङ्गों के आकार ही हैं ! उनकी माता मृगादेवी उसका पालन-पोषण सावधानीपूर्वक छिपे-छिपे कर रही है।'
तदनन्तर भगवान् गौतम ने भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में वन्दन-नमस्कार किया। वन्दननमस्कार करके उनसे विनती-प्रार्थना की कि 'हे प्रभो ! यदि आपकी अनुज्ञा प्राप्त हो तो मैं मृगापुत्र को देखना चाहता हूँ।'
इसके उत्तर में भगवान् ने फरमाया- 'गौतम ! जैसे तुम्हें सुख उपजे वैसा करो!' . १३-तए णं से भगवं गोयम समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुनाए समाणे हट्ठतुढे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिआओ पडिनिक्खमेइ, पडिनिक्खिमित्ता अतुरियं जाव[अचलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओरियं] सोहेमाणे जेणेव मियग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मियग्गामं नयरं मझमझेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव मियादेवीए गिहे तेणेव उवागच्छइ।
आज्ञा प्राप्त कर प्रसन्न व सन्तुष्ट हुए श्री गौतम स्वामी भगवान् के पास से (मृगापुत्र को देखने के लिये) निकले। विवेकपूर्वक (जरा भी उतावल किये बिना ईर्यासमिति का यथोचित पालन करते हुए) भगवान् गौतम स्वामी जहाँ मृगाग्राम नगर था वहाँ आये
और आकर मृगाग्राम नगर के मध्यमार्ग से मृगाग्राम नगर में प्रवेश किया। क्रमश: जहाँ मृगादेवी का घर था, गौतम स्वामी वहाँ पहुँच गये।
१४-तए णं सा मियादेवी भगवं गोयम एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ जाव एवं वयासी-'संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! किमागमणप्पओयणं?'
तए णं से भगवं गोयमे मियादेविं एवं वयासी-'अहं णं देवाणुप्पिए, तव पुत्तं पासिउं हव्वमागए।'
तएणं सा मियादेवी मियापुत्तस्सदारगस्स अणुमग्गजायए चत्तारि पुत्ते सव्वालंकारविभूसिए करेइ, करेत्ता भगवओ गोयमस्स पाएसु पाडेइ, पाडेत्ता एवं वयासी-'एए णं भंते! मम पुत्ते, पासह।'
१४- तदनन्तर उस मृगदेवी ने भगवान् गौतम स्वामी को आते हुए देखा और देखकर हर्षित प्रमुदित हुई यावत् इस प्रकार कहने लगी-'भगवन् ! आपके पधारने का क्या प्रयोजन है ?'