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[ विपाकसूत्र - प्रथम श्रुतस्कन्ध
भारतवर्ष में शतद्वार- नरेश का प्रतिनिधि विजयवर्द्धमान नाम खेट का शासक 'इक्काई' नामक राष्ट्रकूट (राठौड़) था। यह राष्ट्रकूट, अत्यन्त अधर्मी, अधर्मानुयायी, अधर्मनिष्ठ, अधर्मदर्शी, अधर्मप्रज्वलन एवं अधर्माचारी था। आदर्श शासक में जो विशिष्टताएँ होनी चाहिए उनमें से एक भी उसमें नहीं थी । इतना ही नहीं, वह प्रत्येक दृष्टि से भ्रष्ट और अधम शासक था। सब तरह से प्रजा का अधिक से अधिक उत्पीडन करने में ही वह अपनी शान मानता था। वह रिश्वतखोर था, ब्याजखाऊ था और निरपराध जनों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें तंग किया करता था । रात-दिन पाप-कृत्यों में तल्लीन रहता थज्ञा ।
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तीव्रतर पापकर्मों के आचरण का तात्कालिक फल यह हुआ कि कुछ समय के पश्चात् उसके शरीर में एक साथ सोलह कष्टकारी असाध्य रोग उत्पन्न हो गए। इन रोगों के फलस्वरूप 'हाय-हाय ' करता वह चल बसा। अपने पापों के विपाक को भोगने के लिए वह प्रथम नरक में नारक के रूप में उत्पन्न हुआ । नरक की लम्बी आयु भोगने के पश्चात् वह मृगापुत्र के रूप में जन्मा है ।
मृगापुत्र के अतीत की कहानी सुनने के बाद गौतम स्वामी ने उसके भविष्य के विषय में पूछा। भगवान् ने मृगापुत्र का भविष्य बतलाते हुए फर्माया—
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वह प्रथम नरक की एक सागरोपम की आयु पूर्ण करके सिंह इस पर्याय में भी वह अतीव अधर्मी होगा ।
'पर्याय में जन्म लेगा ।
सिंह - पयार्य का अन्त होने पर वह पुनः प्रथम नरक में जन्मेगा ।. नरक से निकल कर सरीसृप रेंग कर चलने वाला जन्तु होगा । तत्पश्चात् दूसरे नरक में उत्पन्न होगा।
फिर पक्षी - योनियों में जन्म लेगा ।
पक्षियों में जन्म-मरण करने के पश्चात् तीसरी नरकभूमि में । फिरपुनः सिंह- पर्याय में ।
तदनन्तर चौथे नरक में ।
उरगजातीय प्राणियों में ।
पाँचवें नरक में ।
स्त्री के रूप में।
छठी तमः प्रभा नरकभूमि में ।
मनुष्यपर्याय में नर के रूप में।
तमस्तमः प्रभा नामक सातवें नरक में ।
लाखों वार जलचर जीवों की साढे बारह लाख कुलकोटियों में ।
तत्पश्चात् चतुष्पदों में, उरपरिसर्पों में, भुजपरिसर्पों में, खेचरों में, चौ- इन्द्रियों में, ते