________________ ग्यारहवें समवाय के प्रथम सूत्र में उपासक की ग्यारह प्रतिमाओं का निरूपण है तो उत्तराध्ययन 35 में भी संक्षेप में सूचन है। बारहवें समवाय के पहले सूत्र में भिक्ष की बारह प्रतिमाएँ गिनाई हैं तो उत्तराध्ययन 736 में भी उनकी संक्षेप में सूचना है। सोलहवें समवाय के पहले सूत्र में सूत्रकृतांग के सोलह अध्ययनों के नाम निर्दिष्ट हैं तो उत्तराध्ययन७३७ में भी उनका संकेत है। सत्तरहवें समवाय के प्रथम सूत्र में सत्तरह प्रकार के असंयम बताये हैं, उनका निर्देश उत्तराध्ययन७३८ में भी है। अठारहवें समवाय के प्रथम सूत्र में ब्रह्मचर्य के अठारह प्रकार बताये हैं, इनका संकेत उत्तराध्ययन 36 में भी प्राप्त होता है। उन्नीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में ज्ञाताधर्मकथा के उन्नीस अध्ययनों के नाम आये हैं तो उत्तराध्ययन 40 में उनका संकेत है। बावीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में बावीस-परीषहों के नाम निदिष्ट हैं तो उत्तराध्ययन 41 में उनका विस्तार से निरूपण है। तेवीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययनों के नाम हैं, उत्तराध्ययन 42 में भी उनका संकेत है। चौबीसवें समवाय के चौथे सूत्र के अनुसार उत्तरायण में रहा हुआ सूर्य चौवीस अंगुल प्रमाण प्रथम प्रहर की छाया करता हुआ पीछे मुड़ता है, यह वर्णन उत्तराध्ययन७४३ में भी है। सत्तावीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में अनगार के सत्तावीस गुण प्रतिपादित हैं, तो उत्तराध्ययन७४४ में भी उनका सूचन है। तीसवें समवाय के प्रथम सूत्र में मोहनीय के तीस स्थान बताये हैं, उत्तराध्ययन 45 में भी इसका निर्देश है। इकतीसवें समवाय के प्रथम मूत्र में सिद्धों के इकतीस गुण कहे हैं, तो उत्तराध्ययन 746 में भी इनका संकेत है। 735. उत्तराध्ययन-अ. 41 736. उत्तराध्ययन-प्र. 31 737. उत्तराध्ययन-अ. 31 738. उत्तराध्ययन-प्र.११ 739. उत्तराध्ययन-अ. 31 740. उत्तराध्ययन-अ.३१ 741. उत्तराध्ययन-अ. 2 742. उत्तराध्ययन-अ. 31 743. उत्तराध्ययन-अ. 26 744. उत्तराध्ययन-अ. 31 745. उत्तराध्ययन---अ. 31 746. उत्तराध्ययन-अ. 31 [ 105 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org