________________ नवतिस्थानक समवाय ] [ 149 एकोननवलिस्थानक-समवाय ४१२-उसभे णं अरहा कोसलिए इमोसे ओसप्पिणीए ततियाए सुसमदूसमाए पच्छिमे भागे एगणणउइए अद्धमासेहि [सेसेहि] कालगए नाव सम्वदुक्खप्पहीणे / समणे णं भगवं महावीरे इमोसे ओसप्पिणीए चउत्थाए दूसमसुसमाए समाए पच्छिमे भागे एगणनउइए अद्धमासेहि सेसेहि कालगए जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। कौलिक ऋषभ अर्हत् इसी अवसर्पिणी के तीसरे सुषमदुषमा पारे के पश्चिम भाग में नवासी अर्धमासों (3 वर्ष 8 मास 15 दिन) के शेष रहने पर कालगत होकर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। श्रमण भगवान महावीर इसी अवसर्पिणी के चौथे दु:षमसुषमा काल के अन्तिम भाग में नवासी अर्धमासों (3 वर्ष 8 मास 15 दिन) के शेष रहने पर कालगत होकर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्वदुःखों से रहित हुए। ४१३-हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी एगूणनउई वाससयाहं महाराया होत्था। चातुरन्त चक्रवर्ती हरिषेणराजा नवासी सौ (8900) वर्ष महासाम्राज्य पद पर आसीन रहे। .414 –संतिस्स णं अरहओ एगणनउई अज्जासाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था। शान्तिनाथ अर्हत् के संघ में नवासी हजार प्रायिकाओं की उत्कृष्ट प्रायिकासम्पदा थी। ॥एकोननवतिस्थानक समवाय समाप्त / / . नवतिस्थानक-समवाय 415-- सोयले णं अरहा नउई धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था / अजियस्स णं अरहओ नउई गणा नउई गणहरा होत्था / एवं संतिस्स वि। शीतल अर्हत् नव्वै धनुष ऊंचे थे। अजित अर्हत् के नव्वै गण और नव्वै गणधर थे / इसी प्रकार शान्ति जिन के नव्वै गण और नब्वै गणधर थे। 416 सयंभुस्स णं वासुदेवस्स णउइवासाइं विजए होत्था / स्वयम्भू वासुदेव ने नव्वै वर्ष में पृथिवी को विजय किया था / ४१७-सव्वेसि णं वट्टवेयपव्ययाणं उरिल्लायो सिहरतलामो सोगंधियकण्डस्स हेटिल्ले चरमंते एस णं नउइजोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org