Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 343
________________ 222] [समवायाङ्गसूत्र 618- नेरइया णं भंते ! किसंघयणी [पन्नत्ता] ? गोयमा! छहं संघयणाणं असंघयणी। णेच अट्ठी व सिरा व हारू / जे पोग्गला अणिट्ठा अकंता अप्पिया अणाएज्जा असुभा अमणुण्णा अमणामा अमणाभिरामा, ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति / भगवन् ! नारक किस संहनन वाले कहे गये हैं ? गौतम ! नारकों के छहों संहननों में से कोई भी संहनन नहीं होता है / वे असंहननी होते हैं, क्योंकि उनके शरीर में हड्डी नहीं है, नहीं शिराएं (धमनियां) हैं और नहीं स्नायु (प्रांतें) हैं / वहाँ जो पुद्गल अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अनादेय, अशुभ, अमनोज्ञ, अमनाम और अमनोभिराम हैं, उनसे नारकों का शरीर संहनन-रहित ही बनता है। ६१९---असुरकुमारा णं भंते ! किसंघयणा पन्नता ? गोयमा ! छण्ह संघयणाणं असंघयणी। वट्ठो नेव छिरा व हारू / जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया [आएज्जा] मणुण्णा [सुभा] मणामा मणाभिरामा, ते तेसि असंघयणताए परिणमंति / एवं जाव थणियकुमाराणं / भगवन् ! असुरकुमार देव किस संहनन वाले कहे गये हैं ? गौतम ! असुरकुमार देवों के छहों संहननों में से कोई भी संहनन नहीं होता है / वे असंहननी होते हैं, क्योंकि उनके शरीर में हड्डी नहीं होती है, नहीं शिराएं होती हैं, और नहीं स्नायु होती हैं / जो पुगद्ल इष्ट, कान्त, प्रिय, [पादेय, शुभ | मनोज्ञ, मनाम और मनोभिराम होते हैं, उनसे उनका शरीर संहनन-रहित ही परिणत होता है / / ___इस प्रकार नागकुमारों से लेकर स्तनितकुमार देवों तक जानना चाहिए अर्थात् उनके कोई संहनन नहीं होता। 620 ---पुढवीकाइया णं भंते ! किसंघयणी पन्नता ? गोयमा ! छेवट्टसंघयणी पन्नता / एवं जाव संमुच्छिम-पंचिदियतिरिक्खजोणिय त्ति / गभवतिया छव्विहसंघयणी / समुच्छिममणुस्सा छेवट्टसंघयणी। गम्भवक्कंतियमणुस्सा छविहसंघयणी / जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतर-जोइसियवेमाणिया य। भगवन् ! पृथिवीकायिक जीव किस संहनन वाले कहे गये हैं ? गौतम ! पृथिवीकायिक जीव सेवार्तसंहनन वाले कहे गये हैं। इसी प्रकार अप्कायिक से लेकर सम्मूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक तक के सब जीव सेवात संहननवाले होते हैं / गर्भोपक्रान्तिक तिर्यंच छहों प्रकार के संहननवाले होते हैं। सम्मूच्छिम मनुष्य सेवार्त संहनन वाले होते हैं / गर्भोपक्रान्तिक मनुष्य छहों प्रकार के संहननवाले होते हैं / जिस प्रकार असुरकुमार देव संहनन-रहित हैं, उसी प्रकार वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव भी संहनन-रहित होते हैं / ६२१-कइविहे गं भंते ! संठाणे पन्नते ? गोयमा ! छविहे संठाणे पन्नते। तं जहा-- समचउरंसे 1, णिग्गोहपरिमंडले 2, साइए 3, बामणे 4, खुज्जे 5, हुंडे 6 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377