Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 350
________________ अतीत-अनागतकालिक महापुरुष ] [229 ६४१-एक्को भगवं वीरो [पासो मल्ली य तिहि तिहि सएहि / भगवं पि वासुपुज्जो हिं पुरिससहि निक्खंतो॥२४॥] उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं [च खत्तियाणं च / चउहिं सहस्सेहिं उसभो सेसा उ सहस्स-परिवारा // 25 // ] दीक्षा ग्रहण करने के लिए भगवान् महावीर अकेले ही घर से निकले थे / पार्श्वनाथ और मल्ली जिन तीन-तीन सौ पुरुषों के साथ निकले। तथा भगवान् वासुपूज्य छह सौ पुरुषों के साथ निकले थे।। 24 / / भगवान् ऋषभदेव चार हजार उग्र, भोग राजन्य और क्षत्रिय जनों के परिवार के साथ दीक्षा ग्रहण करने के लिए घर से निकले थे। शेष उन्नीस तीर्थंकर एक-एक हजार पुरुषों के साथ निकले थे।॥ 25 // ६४२-सुमइत्थ णिच्चभत्तण [णिग्गओ वासुपुज्ज चोत्थेणं / पासो मल्ली य अट्ठमेण सेसा उ छठेणं // 26 // ] सुमति देव नित्य भक्त के साथ, वासुपूज्य चतुर्थ भक्त के साथ, पाव और मल्ली अष्टमभक्त के साथ और शेष बीस तीर्थंकर षष्ठभक्त के नियम के साथ दीक्षित हुए थे / / 26 / / ६४३--एएसि णं चउवीसाए तित्थगराण चउव्वीसं पढमभिक्खादायारो होत्था / तं जहा सिज्जंस बंभदत्ते सुरिंददत्ते य इंददत्ते य / पउमे य सोमदेवे माहिदे तह य सोमदत्ते य // 27 // पुस्से पुणव्वसू पुण्णणंद सुगंदे जये य विजये य / तत्तो य धम्मसोहे सुमित्त तह वग्गसीहे अ॥२८॥ अवराजिय विस्ससेणे वीसइमे होइ उसभसेणे य / दिण्णे वरदत्ते धणे बहुले य प्राणपुवीए // 29 // एए विसद्धलेसा जिणवरभत्तीड पंजलिउडाउ। तं कालं तं समयं पडिलाभेई जिणवारदे // 30 // इन चौवीसों तीर्थंकरों को प्रथम वार भिक्षा देने वाले चौवीस महापुरुष हुए हैं / जैसे 1 श्रेयान्स, 2 ब्रह्मदत्त, 3 सुरेन्द्रदत्त, 4 इन्द्रदत्त, 5 पद्म, 6 सोमदेव, 7 माहेन्द्र, 8 सोमदत्त, 9 पुष्य, 10 पुनर्वसु, 11 पूर्णनन्द, 12 सुलन्द, 13 जय, 14 विजय, 15 धर्मसिंह, 16 सुमित्र, 17 वर्ग (वग्ग) सिंह, 18 अपराजित, 19 विश्वसेन, 20 वृषभसेन, 21 दत्त, 22 वरदत्त, 23 धनदत्त और 24 बहुल, ये क्रम से चौवीस तीर्थंकरों के पहिली वार आहारदान करने वाले जानना चाहिए / इन सभी विशुद्ध लेश्यावाले और जिनवरों की भक्ति से प्रेरित होकर अंजलिपुट से उस काल और उस समय में जिनवरेन्द्र तीर्थकरों को आहार वा प्रतिलाभ कराया // 27-30 / / ६४४--संबच्दरेण जिला [लद्धा उसमेण लोगणाहेण / सेसेहि वीदिवसे लद्धाओ पढमभिक्खाओ // 31 // ] लोकनाथ भगवान ऋषभदेव को.एक वर्ष के बाद प्रथम भिक्षा प्राप्त हुई। शेष सब तीर्थकरों को प्रथम भिक्षा दुगरे दिन प्राप्त हुई / / 31 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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