Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 375
________________ 254] [अनध्यायकाल ३-४.--गजित-विद्युत्-गर्जन और विद्युत प्रायः ऋतु स्वभाव से ही होता है / अतः पार्दा से स्वाति नक्षत्र पर्यन्त अनध्याय नहीं माना जाता। 5. निर्धात-बिना बादल के आकाश में व्यन्तरादिकृत घोर गर्जन होने पर या बादलों सहित प्राकाश में कड़कने पर दो प्रहर तक अस्वाध्यायकाल है / 6. यूपक-शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया को सन्ध्या की प्रभा और चन्द्रप्रभा के मिलने को यूपक कहा जाता है / इन दिनों प्रहर रात्रि पर्यन्त स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। 7 . यक्षादीप्त-कभी किसी दिशा में बिजली चमकने जैसा, थोड़े थोड़े समय पीछे जो प्रकाश होता है वह यक्षादीप्त कहलाता है / अतः अाकाश में जब तक यक्षाकार दीखता रहे तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। 8. धूमिका कृष्ण-कार्तिक से लेकर माघ तक का समय मेघों का गर्भमास होता है / इसमें धूम्र वर्ण की सूक्ष्म जलरूप धुध पड़ती है / वह धूमिका-कृष्ण कहलाती है। जब तक यह धुध पड़ती रहे, तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। 9. मिहिकाश्वेत-शीतकाल में श्वेत वर्ण की सूक्ष्म जलरूप धुन्ध मिहिका कहलाती है। जब तक यह गिरती रहे, तब तक अस्वाध्याय काल है। 10. रज उद्घात-वायु के कारण आकाश में चारों ओर धूलि छा जाती है। जब तक यह धूलि फैली रहती है , स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। उपरोक्त दस कारण आकाश सम्बन्धी अस्वाध्याय के हैं। औदारिक सम्बन्धी दस अनध्याय 11-12-13. हड्डी मांस और रुधिर-पंचेद्रिय तिर्यंच की हड्डी, मांस और रुधिर यदि सामने दिखाई दें, तो जब तक वहाँ से यह वस्तुएं उठाई न जाएँ जब तक अस्वाध्याय है / वृत्तिकार पास पास के 60 हाथ तक इन वस्तुओं के होने पर अस्वाध्याय मानते हैं / इसी प्रकार मनुष्य सम्बन्धी अस्थि मांस और रुधिर का भी अनध्याय माना जाता है / विशेषता इतनी है कि इनका अस्वाध्याय सौ हाथ तक तथा एक दिन रात का होता है। स्त्री के मासिक धर्म का प्रस्वाध्याय तीन दिन तक / बालक एवं बालिका के जन्म का अस्वाध्याय क्रमश: सात एवं आठ दिन पर्यन्त का माना जाता है। 14. अशुचि--मल-मूत्र सामने दिखाई देने तक अस्वाध्याय है। 15. श्मशान-श्मशानभूमि के चारों ओर सौ-सौ हाथ पर्यन्त अस्वाध्याय माना जाता है / 16. चन्द्रग्रहण—चन्द्रग्रहण होने पर जघन्य पाठ, मध्यम बारह और उत्कृष्ट सोलह प्रहर पर्यन्त स्वाध्याय नहीं करना चाहिए / ण होने पर भी क्रमशः पाठ, बारह और सोलह प्रहर पर्यन्त अस्वाध्यायकाल माना गया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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