Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 360
________________ अतीत-अनागतकालिक महापुरुष ] [239 ६६७–जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउवासं तिस्थगरा भविस्संति / तं जहा महापउमे सूरदेवे सूपासे य सयंपों। सव्वाणुभूई अरहा देवस्सुए य होक्खइ / / 74 // उदए पेढालपुत्ते य पोट्टिले सत्तकित्ति य / मुणिसुब्वए य अरहा सव्वभावविऊ जिणे / / 75 // अममे णिक्कसाए य निप्पुलाए य निम्ममे। चित्तउत्ते समाही य आगमिस्सेण होक्खइ // 76 // संवरे अणियट्टी य विजए विमले ति य / देवोववाए अरहा अणंतविजए इ य // 77 // एए वुत्ता चउव्वीसं भरहे वासम्मि केवली। आगमिस्सेण होक्खंति धम्मतित्थस्स देसगा / / 78 // इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में अागामी उत्सपिणी काल में चौवीस तीर्थकर होंगे / जैसे-- 1. महापा, 2. सूरदेव, 3. सुपार्श्व, 4. स्वयम्प्रभ, 5. सर्वानुभूति, 6. देवश्रुत, 7. उदय, 8. पेढालपुत्र, 9. प्रोष्ठिल, 10. शतकीति, 11. मुनिसुव्रत, 12. सर्वभाववित्, 13. अमम, 14. निष्कषाय, 15. निष्पलाक, 16. निर्मम, 17. चित्रगुप्त, 18. समाधिगुप्त, 19. संवर, 20. अनिवत्ति, 21. विजय, 22. विमल, 23. देवोपपात और 24. अनन्तविजय / ये चौवीस तीर्थंकर भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में धर्मतीर्थ की देशना करने वाले होंगे / / 74-78 / / ६६८-एएसिणं चउव्वीसाए तित्थकराणं पुव्वभविया चउव्वीसं नामधेज्जा भविस्संति (?) (होत्था / ) सेणिय सुपास उदए पोट्टिल्ल तह दढाऊ य / कत्तिय संखे य तहा नंद सुनन्दे य सतए य // 79 // बोधव्वा देवई य सच्चइ तह वासुदेव बलदेवे।। रोहिणि सुलसा चेव तत्तो खलु रेवई चेव / / 80 // तत्तोहबइ सयाली बोधब्वे खलुतहा भयालीय। दीवायणे य कण्हे तत्तो खलु नारए चेव // 81 // अंबड दारुमडे य साई बुद्धे य होइ बोद्धव्वे / भावी तित्थगराणं णामाई पुव्ववियाई // 2 // इन भविष्यकालीन चौवीस तीर्थंकरों के पूर्व भव के चौवीस नाम इस प्रकार हैं--- 1. श्रेणिक, 2. सुपार्श्व, 3. उदय, 4. प्रोष्ठिल अनगार, 5. दृढायु, 6. कार्तिक, 7. शंख, 8. नन्द, 9. सुनन्द, 10. शतक, 11. देवकी, 12. सात्यकि, 13. वासुदेव, 14. बलदेव, 15. रोहिणी, 16. सुलसा, 17. रेवती, 18. शताली, 19. भयाली, 20. द्वीपायन, 21. नारद, 22. अंबड, 23. स्वाति, 24. बुद्ध / ये भावी तीर्थकरों के पूर्व भव के नाम जानना चाहिए / 179-82 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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