Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 345
________________ 224] [समवायाङ्गसूत्र जिस प्रकार असुरकुमार देव समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं, उसी प्रकार वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव भी समचतुरस्र संस्थानवाले होते हैं / ६२५---कइविहे णं भंते ! वेए पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविहे वेए पन्नत्ते। तं जहा-इत्थीवेए पुरिसवेए नपुसवेए। भगवन् ! वेद कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! वेद तीन हैं-स्त्री वेद, पुरुष वेद और नपुसक वेद / ६२६–नेरइया णं भंते ! कि इत्थीवेया पुरिसवेया णपुसगवेया पन्नत्ता? गोयमा ! णो इत्थीवेया, णो पुवेया, गपु सगवेया पण्णत्ता। भगवन् ! नारक जीव क्या स्त्री वेदवाले हैं, अथवा नपुसक वेदवाले हैं ? गौतम ! नारक जीव न स्त्री वेदवाले हैं, न पुरुषवेद वाले हैं, किन्तु नपुसक वेदवाले होते हैं / र ६२७-असुरकुमारा णं भंते ! कि इत्थोवेया पुरिसवेया णपुसगवेया ? गोयमा ! इत्थीवेया, पुरिसवेया। णो णपुसगवेया। जाव थणियकुमारा। भगवन् ! असुरकुमार देव स्त्रीवेदवाले हैं, पुरुषवेद वाले हैं, अथवा नपुसक वेदवाले हैं ? गौतम ! असुरकुमार देव स्त्री वेदवाले हैं, पुरुषवेद वाले हैं, किन्तु नपुसक वेदवाले नहीं होते हैं / इसी प्रकार स्तनितकुमार देवों तक जानना चाहिए / ६२८-पुढवी आऊ तेऊ वाऊ वणस्सई वि-ति-चरिदिय-समुच्छिमचिदियतिरिक्खसंमुच्छिममणुस्सा णपुंसगवेया। गब्भवक्कंतियमणुस्सा पंचिदियतिरिया य तिवेया। जहा असुरकुमारा, तहा वाणमंतरा जोइसिय-वेमाणिया वि। पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, सम्मूच्छिमपंचेन्द्रिय तिथंच और सम्मूच्छिम मनुष्य नपुंसक वेदवाले होते हैं / गर्भोपक्रान्तिक मनुष्य और गर्भोपक्रान्तिक तिर्यच तीनों वेदों वाले होते हैं / जैसे-असुकुमार देव स्त्री वेद और पुरुष वेदवाले होते हैं, उसी प्रकार वानव्यन्तर, ज्योतिष्क वैमानिक देव भी स्त्रीवेद और पुरुष वेद वाले होते हैं। [विशेष बात यह है कि ग्रेवेयक और अनुत्तर विमानवासी देव, तथा लौकान्तिक देव केवल पुरुष वेदी होते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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