Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti
________________ 226] [समवायाङ्गसूत्र इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवपिणी काल में सात कुलकर हुए / जैसे--- 1. विमलवाहन, 2. चक्षुष्मान् 3. यशष्मान् 4. अभिचन्द्र, 5. प्रसेनजित, 6. मरुदेव, 7. नाभिराय / / 3 / / इन सातों ही कुलकरों की सात भार्याएं थीं / जैसे-. 1. चन्द्रयशा, 2. चन्द्रकान्ता, 3. सुरूपा, 4. प्रतिरूपा, 5. चक्षुष्कान्ता, 6. श्रीकान्ता और 7. मरुदेवो / ये कुलकरों को पत्नियों के नाम हैं / / 4 // ६३३–जंबुद्दीवे णं वीवे भारहे वासे इमोसे णं प्रोसप्पिणीए चउवीसं तित्थगराणं पियरो होत्था / तं जहा णाभी य जियसत्तू य [जियारी संवरे इय / मेहे धरे पइठे य महसेणे य खत्तिए // 5 // सुग्गोवे दढरहे विण्हू वसुपुज्जे य खत्तिए / कयवम्मा सोहसेणे भाणू विस्ससणे इय // 6 // सूरे सुदंसणे कुभे सुमित्तविजए समुद्दविजये य / राया य आससेणे य सिद्धत्थे च्चिय खत्तिए // 7 // ] उदितोदिय कलवंसा विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया। तित्थप्पबत्तयाणं एए पियरो जिणवराणं // 8 // इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में चौवीस तीर्थंकरों के चौवीस पिता हुए। जैसे 1. नाभिराय, 2. जितशत्रु, 3. जितारि, 4. संवर, 5. मेघ, 6. धर, 7. प्रतिष्ठ, 8. महासेन, 9. सुग्रोव, 10. दृढ़रथ, 11. विष्णु, 12. वसुपूज्य, 13. कृतवर्मा, 14. सिंहसेन, 15. भानु, 16. विश्वसेन 17. सूरसेन, 18. सुदर्शन, 19. कुम्भराज, 20. सुमित्र, 21. विजय, 22. समुद्रविजय, 23. अश्वसेन और 24. सिद्धार्थ क्षत्रिय // 5-7 / / तीर्थ के प्रवर्तक जिनवरों के ये पिता उच्च कुल और उच्च विशुद्ध वंश वाले तथा उत्तम गुणों से संयुक्त थे / / 8 / / ६३४-जंबद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे प्रोसप्पिणीए चउवीसं तित्थगराणं मायरो होत्था / तं जहा मरदेवी विजया सेणा [सिद्धस्था मंगला सुसीमा य / पुहवी लक्खणा रामा नंदा विण्हू जया सामा // 9 // सुजसा सुब्वय अइरा सिरिया देवी पभावई पउमा / वप्पा सिवा य वामा य तिसलादेवी य जिणमाया // 10 // ] इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी में चौवीस तीर्थंकरों की चौवीस माताएं हुई 1. मरुदेवी, 2. विजया, 3. सेना, 4. सिद्धार्था, 5. मंगला, 6. सुसीमा, 7. पृथिवी, 8. लक्ष्मणा, 9. रामा, 10. नन्दा, 11. विष्णु, 12 जया, 13. श्यामा, 14. सुयशा, 15. सुव्रता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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