Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 312
________________ द्वादशाङ्ग गणिपिटक] [191 विपाकसूत्र की परीत वाचनाएं हैं, संख्यात अनुयोग द्वार हैं, संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं, संख्यात वेढ हैं, संख्यात श्लोक हैं / संख्यात नियुक्तियाँ हैं और संख्यात संग्रहणियाँ हैं। __ 556 –से णं अंगठ्ठयाए एक्कारसमे अंगे, वीसं अज्झयणा, वोसं उद्देसणकाला, वीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाइं पयसयसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ताई। संखेज्जाणि, अक्खराणि, अजंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जति परूविज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति / से एवं आया, से एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरण-करणपरूवणया प्राघविज्जति० / से तं विवायसुए 11 / यह विपाकसूत्र अंगरूप से ग्यारहवां अंग है। बीस अध्ययन हैं, बीस उद्देशन-काल हैं, बीस समुद्देशन-काल हैं, पद-गणना की अपेक्षा संख्यात लाख पद हैं। संख्यात अक्षर हैं, अनन्त गम हैं, अनन्त पर्याय हैं परीत त्रस हैं, अनन्त स्थावर हैं 1 इसमें शाश्वत, कृत, निबद्ध, निकाचित भाव कहे जाते हैं, प्रज्ञापित किये जाते हैं, प्ररूपित किए जाते हैं, निर्शित किये जाते हैं और उपदर्शित किये जाते हैं / इस अंग के द्वारा प्रात्मा ज्ञाता होता है, विज्ञाता होता है। इस प्रकार चरण और करण की प्ररूपणा के द्वारा वस्तुस्वरूप का कथन, प्रज्ञापन, निदर्शन और उपदर्शन किया जाता है। यह ग्यारहवें विपाक सूत्र अंग का परिचय है 11 / ५५७–से कि तं दिट्टिवाए ? दिट्टिवाए णं सब्वभावपरूवणया आघविज्जति / से समासओ पंचविहे पण्णत्ते / तं जहा-परिकम्म सुताइं पुधगयं अणुओगो चूलिया। यह दृष्टिवाद अंग क्या है--इस में क्या वर्णन है ? दृष्टिवाद अंग में सर्व भावों की प्ररूपणा की जाती है। वह संक्षेप से पाँच प्रकार का कहा गया है / जैसे-१. परिकर्म, 2. सूत्र, 3. पूर्वगत, 4. अनुयोग और 5. चूलिका। ५५८-.-से कि तं परिकम्मे ? परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते / तं जहा-सिद्धसेणियापरिकम्मे मणुस्ससेणियापरिकम्मे पुट्ठसेणियापरिकम्मे प्रोगाहणसेणियापरिकम्मे उवसंपज्जसेणियापरिकम्मे विप्पजहसेणियापरिकम्मे चुआचुग्रसेणियापरिकम्मे। परिकर्म क्या है ? परिकर्म सात प्रकार का कहा गया है। जैसे--१ सिद्धश्रेणिका-परिकर्म, 2 मनुष्यश्रेणिका परिकर्म, 3 पुष्टश्रेणिका परिकर्म, 4 अवगाहनश्रेणिका परिकर्म, 5 उपसंपर पाहनश्रणिका परिकर्म, 5 उपसंपद्यश्रेणिका परिकर्म, 6 विप्रजहतश्रेणिका परिकर्म और 7 च्युताच्युतश्रेणिका-परिकर्म / 559- से कि तं सिद्धसेणियापरिकम्मे ? सिद्धसेणिआपरिकम्मे चोहसविहे पण्णत्ते / तं जहामाउयापयाणि एगट्टियपयाणि पाढोढपयाणि अागासपयाणि केउभूयं रासिबद्धं एगगुणं दुगुणं तिगुणं केउभूयपडिग्गहो संसारपडिग्गही नंदावत्तं सिद्धबद्धं / से तं सिद्धसेणियापरिकम्मे / सिद्धश्रेणिका परिकर्म क्या है ? सिद्धश्रेणिका परिकर्म चौदह प्रकार का कहा गया है। जैसे -1 मातृकापद, 2 एकार्थकपद, 3 अर्थपद, 4 पाठ, 5 आकाशपद, 6 केतुभूत, 7 राशिबद्ध, 8 एकगुण, 9 द्विगुण, 10 त्रिगुण, 11 केतुभूतप्रतिग्रह, 12 संसार-प्रतिग्रह, 13 नन्द्यावर्त, और सिद्धबद्ध / यह सब सिद्धश्रेणिका परिकर्म हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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