Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 320
________________ विविधविषयनिरूपण ५७६-दुवे रासी पन्नत्ता / तं जहा- जीवरासी अजीवरासी य / अजीवरासी दुविहा पन्नत्ता। तं जहा-रूवो अजीवरासो अरूबी अजोवरासी य / ___ दो राशियां कही गई हैं. ---जीवराशि और अजीव राशि / अजीवराशि दो प्रकार की कही गई है / रूपी अजोवराशि और अरूपी अजीवराशि / ५७७-से कि तं अस्वी अजीवरासी ? अरूवी अजीवरासी दसविहा पन्नत्ता / तं जहा--- धम्मस्थिकाए जाव [धम्मत्थिकायदेसा, धम्मस्थिकायपदेसा, अधम्मस्थिकाए, अधम्मस्थिकायदेसा, अधम्मत्थिकायपदेसा, प्रागासस्थिकाए, पागासस्थिकायदेसा, पागासस्थिकायपदेसा] श्रद्धासमए / अरूपी अजीवराशि क्या है ? अरूपी अजीवराशि दश प्रकार की कही गई है। जैसे-धर्मास्तिकाय यावत् (धर्मास्तिकाय देश, धर्मास्तिकायप्रदेश, अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय देश, अधर्मास्तिकाय प्रदेश, आकाशास्तिकाय, आकाशास्तिकाय देश, आकाशास्तिकाय प्रदेश) और अद्धासमय / ५७८-रूपी अजीवरासी अणेगविहा पन्नत्ता जाव............... [रूपी अजीवराशि क्या है ? ] रूपी अजीवराशि अनेक प्रकार की कही गई है यावत् विवेचन--रूपी ग्रजीवराशि का तथा जीवराशि का विवरण यहाँ नहीं दिया गया है, केवल जाव शब्द का प्रयोग करके यह सूचित कर दिया गया है कि प्रज्ञापनासूत्र के पहले प्रज्ञापना नामक पद के अनुसार इसका निरूपण समझ लेना चाहिए। दोनों स्थलों में अन्तर, मात्र एक शब्द का है / प्रज्ञापनासूत्र में जहाँ 'प्रज्ञापना' शब्द का प्रयोग है, वहां इस स्थान पर राशि शब्द का प्रयोग करना चाहिए। शेष कथन दोनों जगह समान है / टीका के अनुसार संक्षिप्त कथन इस प्रकार है-- रूपी अजीवरूप अर्थात् पुद्गल राशि चार प्रकार की है स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु / अनन्त परमाणों के सम्पूर्ण पिंड को स्कन्ध कहते हैं। स्कन्ध के उसमें मिले हए भाग को देश कहते हैं और स्कन्ध के साथ जुड़े अविभागी अंश को प्रदेश कहते हैं / पुद्गल के सबसे छोटे अविभागी अंश को, जो पृथक् है, परमाणु कहते हैं / ' पुनः यह पुद्गल वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान के भेद से पाँच प्रकार का है / पुनः संस्थान भी पुद्गल-परमाणुओं के संयोग से अनेक प्रकार का होता है / यह पुद्गल शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, भेद, तम, (अन्धकार) छाया, उद्योत (चन्द्र-प्रकाश) और प्रातप (सूर्य-प्रकाश) आदि के भेद से भी अनेक प्रकार का है। 1. पंचास्तिकाय में देश और प्रदेश का स्वरूप भिन्न प्रकार से बतलाया गया है खधं सयलसमत्थं, तस्स य अद्ध भणति देसोत्ति / तस्स य अद्ध पदेशं जं अविभागी वियाण परमाणु त्ति / / -पंचास्तिकाय, गाथा 95 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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