________________ चतुर्नवतिस्थानक समवाय] [153 त्रिनवतिस्थानक-समवाय ४२५-चंदप्पहस्स णं अरहो तेणउई गणा तेणउइं गणहरा होत्था / संतिस्स णं अरहओ तेणउई चउद्दस पुध्वसया होत्था / चन्द्रप्रभ अर्हत् के तेरानवे गण और तेरानवे गणधर थे / शान्ति अर्हत् के संघ में तेरानवे सौ (9300) चतुर्दशपूर्वी थे। 426 तेणउई मंडलगते णं सूरिए अतिवट्टमाणे निवट्टमाणे वा समं अहोरतं विसमं करेइ / दक्षिणायन से उत्तरायण को जाते हुए, अथवा उत्तरायण से दक्षिणायन को लौटते हुए तेरानवे मण्डल पर परिभ्रमण करता हुआ सूर्य सम अहोरात्र को विषम करता है। विवेचन -सूर्य के परिभ्रमण के संचारमण्डल 184 हैं। उनमें से जब सूर्य जम्बूद्वीप के ऊपर सबसे भीतरी भण्डल पर संचार करता है, तब दिन अठारह मुहर्त का होता है और रात बारह मुहर्त की होती है। इसी प्रकार जब सूर्य लवणसमुद्र के ऊपर सबसे बाहरी मण्डल पर परिभ्रमण करता है, तब दिन बारह मुहूर्त का होता है और रात अठारह मुहूर्त की होती है। इसी प्रकार सूर्य के उत्तरायण को जाते या दक्षिणायन को लौटते हुए तेरानवैवें मण्डल पर परिभ्रमण करते समय दिन और रात दोनों ही समान अर्थात् पन्द्रह-पन्द्रह मुहूर्त के होते हैं / इससे आगे यदि वह उत्तर की ओर संचार करता है तो दिन बढ़ने लगता है और रात घटने लगती है। और यदि वह दक्षिण की ओर संचार करता है तो रात बढ़ने लगती है और दिन घटने लगता है। इसी व्यवस्था को ध्यान में रख कर कहा गया है कि तेरानवें मण्डलगत सूर्य आगे जाता या लौटता हुआ सम अहोरात्र को विषम करता है। ॥त्रिनवतिस्थानक समवाय समाप्त / चतुर्नवतिस्थानक-समवाय ४२७–निसह-नीलवंतियाओ णं जीवाप्रो चउणउई चउणउई जोयणसहस्साई एक्कं छप्पन्न जोयणसयं दोन्नि य एगूणवीसहभागे जोयणस्स आयामेणं पण्णत्ताओ। निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वतों की जीवाएं चौरान हजार एक सौ छप्पन योजन तथा एक योजन के उन्नीस भागों में से दो भाग प्रमाण (94156:1) लम्बी कही गई है। ४२८-अजियस्स गं अरहओ चउणउई प्रोहिनाणिसया होत्था / अजित अर्हत् के संघ में चौरान सौ (9400) अवधिज्ञानी थे। // चतुर्नवतिस्थानक समवाय समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org