________________ अनेकोत्तरिका-वृद्धि-समवाय] ४८६-अरहा णं अरिटुनेमी दस वाससयाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्ध जाव सव्वदुक्खप्पहीणे / पासस्स णं अरहओ दस सयाई जिणाणं होत्था। पासस्स णं अरहओ दस अंतेवासीसयाई कालगयाइं जाव सव्वदुक्खप्पहीणाई। अरिष्टनेमि अर्हत् दश सौ वर्ष (1000) की समग्र आयु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए / पार्श्व अर्हत् के दश सौ अन्तेवासी (शिष्य) कालगत होकर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए / ४८७-पउमद्दह-पुडरोयद्दहा य दस दस जोयणसथाई आयामेणं पण्णत्ता / 1000 / पद्मद्रह और पुण्डरीकद्रह दश-दश सौ (1000) योजन लम्बे कहे गये हैं / ४८८--अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं विमाणा एक्कारस जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। अनुत्तरौपपातिक देवों के विमान ग्यारह सौ (1100) योजन ऊंचे कहे गये हैं। ४८९-पासस्स णं अरहओ इक्कारस सयाई वेउम्बियाणं होत्था / 1100 / पार्श्व अर्हत् के संघ में ग्यारह सौ (1100) वैक्रिय लब्धि से सम्पन्न साधु थे। ४९०-महापउभ-महापुडरीयदहाणं दो-दो जोयणसहस्साई आयामेणं पण्णत्ता / 2000 / महापद्म और महापुडरीकद्रह दो-दो हजार योजन लम्बे हैं / 491-- इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए वइरकंडस्स उवरिल्लाओ चरमंताओ लोहियवखकंडस्स हेटिल्ले चरमंते एस णं तिन्नि जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / 3000 / इस रत्नप्रभा पृथिवी के वज्रकांड के ऊपरी चरमान्त भाग से लोहिताक्ष कांड का निचला चरमान्त भाग तीन हजार योजन के अन्तरवाला है। विवेचन--क्योंकि वज्रकांड दूसरा और लोहिताक्ष कांड चौथा है, और प्रत्येक कांड एक-एक हजार योजन मोटा है, अतः दूसरे कांड के उपरिम भाग से चौथे कांड का अधस्तन भाग तीन हजार योजन के अन्तरवाला स्वयं सिद्ध है। ४९२--तिगिछ-केसरिदहा णं चत्तारि-चत्तारि जोयणसहस्साई आयामेणं पण्णत्ता / 4000 / तिगिछ और केशरी द्रह चार-चार हजार योजन लम्बे हैं / 493 -धरणितले मंदरस्स णं पव्वयस्स बहुमज्झदेसभाए रुयगनाभोओ चउदिसि पंच-पंच जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे मंदरपवए पण्णत्ते / 5000 / धरणीतल पर मन्दर पर्वत के ठीक बीचों बीच रुचकनाभि से चारों ही दिशाओं में मन्दर पर्वत पाँच-पाँच हजार योजन के अन्तरवाला है / 5000 / विवेचन-समभूमि भाग पर दश हजार योजन के विस्तार वाले मन्दर पर्वत के ठीक मध्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org