________________ 40 [समवायाङ्गसूत्र चतुर्दशस्थानक-समवाय ९२-चउद्दस भूअग्गामा पण्णत्ता, तं जहा-सुहमा अपज्जत्तया, सुहमा पज्जत्तया, बादरा अपज्जत्तया, बादरा पज्जत्तया, बेइंदिया अपज्जत्तया, बेइंदिया पज्जत्तया, तेइंदिया अपज्जत्तया, तेइंदिया पज्जत्तया, चउरिदिया अपज्जत्तया, चारिदिया पज्जत्तया, पंचिदिया असन्नि-अपज्जत्तया, पंचिदिया असन्नि-पज्जत्तया, पंचिंदिया सन्नि-अपज्जत्तया, पंचिदिया सन्निपज्जत्तया। चौदह भूतग्राम (जीवसमास) कहे गये हैं। जैसे--सूक्ष्म अपर्याप्तक एकेन्द्रिय, सूक्ष्म पर्याप्तक एकेन्द्रिय, बादर अपर्याप्तक एकेन्द्रिय, बादर पर्याप्तक एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक, द्वीन्द्रिय पर्याप्तक, त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक, त्रीन्द्रिय पर्याप्तक, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक, चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक, पंचेन्द्रिय असंज्ञी अपर्याप्तक, पंचेन्द्रिय असंज्ञी पर्याप्तक, पंचेन्द्रिय संज्ञी अपर्याप्तक और पंचेन्द्रियसंज्ञी पर्याप्तक / विवेचन--पर्याप्ति शब्द का अर्थ पूर्णता है। आहार, शरीर, इन्द्रियादि के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके उन्हें तद्रूप परिणत करने की योग्यता की पूर्णता पर्याप्ति कहलाती है। वे छह है-पाहार शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मनःपर्याप्ति / जिन जीवों में जितनी पर्याप्तियां संभव हैं, उनकी पूर्णता जिन्होंने प्राप्त करली है वे पर्याप्त कहलाते हैं। जिन्हें वह पूर्णता प्राप्त नहीं हुई हो उन्हें अपर्याप्त कहते हैं / इनकी पूर्ति का काल अन्तर्मुहूर्त है / ९३–चउद्दस पुव्वा पण्णत्ता, तं जहा उप्पायपुस्चयग्गेणियं च तइयं च वीरियं पुवं / प्रत्थीनस्थिपवायं तत्तो नाणप्पवायं च // 1 // सच्चप्पवास पुव्वं तत्तो प्रायप्पवायपुव्वं च / कम्मप्पवायपुव्वं पच्चक्खाणं भवे नवमं // 2 // विज्जाअनुप्पवायं अबंझपाणाउ बारसं पुव्वं / तत्तो किरियविसालं पुवं तह बिंदुसारं च // 3 // चौदह पूर्व कहे गये हैं जैसे उत्पाद पूर्व, अमायणीय पूर्व, वीर्यप्रवाद-पूर्व, अस्तिनास्ति प्रवाह-पूर्व, ज्ञानप्रवाद-पूर्व, सत्यप्रवाद-पूर्व, प्रात्मप्रवाद-पूर्व, कर्मप्रवाद-पूर्व, प्रत्याख्यानप्रवाद-पूर्व, विद्यानुवाद-पूर्व, अबन्ध्य-पूर्व, प्राणावाय-पूर्व, क्रियाविशाल-पूर्व तथा लोकबिन्दुसार-पूर्व / विवेचन-बारहवें अंग दृष्टिवाद का एक विभाग पूर्व कहलाता है। पूर्व चौदह हैं। उनमें से उत्पाद-पूर्व में उत्पाद का प्राश्रय लेकर द्रव्यों के पर्यायों की प्ररूपणा की गई है। अनायणोय-पूर्व में द्रव्यों के अग्र-परिमाण का आश्रय लेकर उनका निरूपण किया गया है / वीर्यप्रवाद-पूर्व में जीवादि द्रव्यों के वीर्य-शक्ति का निरूपण किया गया है। अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व में द्रव्यों के स्वद्रव्य-क्षेत्रकाल-भाव की अपेक्षा अस्तित्व का और परद्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा नास्तित्व धर्म का प्ररूपण किया गया है / ज्ञानप्रवादपूर्व में मतिज्ञानादि ज्ञानों के भेद-प्रभेदों का सस्वरूप निरूपण किया है। सत्यप्रवादपूर्व में सत्य-संयम, सत्य वचन तथा उनके भेद-प्रभेदों का और उनके प्रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org