________________ 142] [समवायाङ्गसूत्र पानक-समवाय ३८७--चउरासीइ निरयावाससयसहस्सा / चौरासी लाख नारकावास कहे गये हैं। 388 --उसभे णं अरहा कोसलिए चउरासीइं पुव्वसयसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे जाव सम्वदुक्खप्पहीणे / एवं भरहो बाहुबली बंभी सुंदरी। कौशलिक ऋषभ अर्हत् चौरासी लाख पूर्व वर्ष की सम्पूर्ण आयु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त और परिनिर्वाण को प्राप्त होकर सर्व दुःखों से रहित हुए। इसी प्रकार भरत, बाहुबली, ब्राह्मी और सुन्दरी भी चौरासी-चौरासी लाख पूर्व वर्ष की पूरी प्रायु पाल कर सिद्ध, बुद्ध, कर्ममुक्त परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए / ३८९–सिज्जसे णं अरहा चउरासीई वाससयसहस्साई सब्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीण। श्रेयान्स अर्हत् चौरासी लाख वर्ष की आयु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्मभुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। ३९०-तिविढे णं वासुदेवे चउरासीइं वाससयसहस्साई सब्वाउथं पालइत्ता अप्पइट्टाणे नरए नेरइयत्ताए उववन्ने / त्रिपृष्ट वासुदेव चौरासी लाख वर्ष की सर्व प्रायु भोग कर सातवीं पृथिवी के अप्रतिष्ठान नामक नरक में नारक रूप से उत्पन्न हुए। 391 –सक्कस्स णं देविंदस्स देवरनो चउरासीई सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। देवेन्द्र, देवराज शक के चौरासी हजार सामानिक देव हैं। 392 --सव्वे विगं बाहिरया मंदरा चउरासीइं चउरासीइं जोषणसहस्साई उडढं उच्चत्तणं पण्णत्ता / सम्वे वि णं अंजणगपव्वया चउरासीई चउरासोइं जोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णता। जम्बूद्वीप से बाहर के सभी (चारों) मन्दराचल चौरासी चौरासी हजार योजन ऊंचे कहे गये हैं। नन्दीश्वर द्वीप के सभी (चारों) अंजनक पर्वत चौरासी-चौरासी हजार योजन ऊंचे कहे गये हैं। 393 हरिवास-रम्मयवासियाणं जीवाणं धणपिट्टा चउरासीइं जोयणसहस्साई सोलस जोयणाई चत्तारि य भागा जोयणस्स परिक्खेवेणं पण्णत्ता। हरिवर्ष और रम्यकवर्ष की जीवाओं के धनु:पृष्ठ का परिक्षेप (परिधि) चौरासी हजार सोलह योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से चार भाग प्रमाण (8401631) हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org