________________ व्यशीतिस्थानक समवाय [141 विवेचन-रत्नप्रभा पृथिवी के तीन काण्ड या विभाग हैं-खरकांड, पंककांड और अब्बहुल काण्ड / इनमें से खरकांड के सोलह भाग हैं-१ रत्नकांड, 2 वज्रकांड, 3 वैडूर्यकांड, 4 लोहिताक्ष कांड, 5 मसारगल्ल, 6 हंसगर्भ, 7 पूलक, 8 सौगन्धिक, 9 ज्योतीरस, 10 अंजन, 11 , 11 अजनपुलक, 12 रजत, 13 जातरूप, 14 अंक, 15 स्फटिक और 16 रिष्टकांड। ये प्रत्येक कांड एक एक हजार योजन मोटे हैं / प्रकृत में आठवें सौगन्धिक कांड का अधस्तन तलभाग विवक्षित है, जो रत्नप्रभा पृथिवी के उपरिम तल से आठ हजार योजन है / तथा रत्नप्रभापृथिवी के उपरिमतल से महाहिमवन्त वर्षधर पर्वत का उपरिमतल भाग दो सौ योजन है। इस प्रकार दोनों को मिलाकर (8000 +200 = 8200) व्यासी सौ या पाठ हजार दो सौ योजन का अन्तर महाहिमवन्त के ऊपरी भाग से सौगन्धिक कांड के अधस्तन तल भाग का सिद्ध हो जाता है। रुक्मी वर्षधर पर्वत भी दो सौ योजन ऊंचा है, उसके ऊपरी भाग से उक्त सौगन्धिक काण्ड का अधस्तन तल भी व्यासी सौ (8200) योजन के अन्तरवाला है। // यशोतिस्थानक समवाय समाप्त / त्रि-अशीतिस्थानक समवाय ३८४—समणे [f] भगवं महावीरं वासीइ राइदिएहि बोइक्कतेहि तेयासोइमे राइदिए वट्टामणे गब्भानो गन्भं साहरिए। श्रमण भगवान महावीर व्यासी रात-दिनों के बीत जाने पर तियासीवें रात-दिन के वर्तमान होने पर देवानन्दा के गर्भ से त्रिशला के गर्भ में संहृत हुए। ३८५.-सीयलस्स णं अरहो तेसोई गणा, तेसीई गणहरा होत्था। थेरे णं मंडियपुत्ते तेसोई वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे / शीतल अर्हत् के संघ में तियासी गण और तियासी गणधर थे / स्थविर मंडितपुत्र तियासी वर्ष की सर्व प्रायु का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित हुए। ३८६-उसभे णं अरहा कोसलिए तेसीइं पुथ्वसयसहस्साई अगारमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए। भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी तेसोइं पुश्वसयसहस्साई अगारमज्झे वसित्ता जिणे जाए केवली सव्वन्नू सव्वभावदरिसी। कौशलिक ऋषभ अर्हत् तियासी लाख पूर्व वर्ष अगारवास में रह कर मुडित हो अगार से अनगारिता में प्रवजित हुए। चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा तियासी लाख पूर्व वर्ष अगारवास में रह कर सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी केवली जिन हुए। ॥ज्यशीतिस्थानक समवाय समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org