________________ एकाशीतिस्थानक समवाय] [139 अशीतिस्थानक-समवाय ३७५---सेजसे णं अरहा असीइं धणूई उड्ढे उच्चतेणं होत्था / तिविट्ठ णं वासुदेवे असीई धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। अयले णं बलदेवे असीई धणई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था / तिविठे णं वासुदेवे असीइ वाससयसहस्साई महाराया होत्था / श्रेयान्स अर्हन अस्सी धनुष ऊंचे थे। त्रिपृष्ठ वासुदेव अस्सी धनुष ऊंचे थे। अचल बलदेव अस्सो धनुष ऊंचे थे। त्रिपृष्ठ वासुदेव अस्सी लाख वर्ष महाराज पद पर आसीन रहे। ३७६---आउबहुले णं कंडे असोइ जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते / रत्नप्रभा पृथिवी का तीसरा अब्बहुल कांड (भाग) अस्सी हजार योजन मोटा कहा गया है / ३७७-ईसाणस्स देविदस्स देवरन्नो असीई सामाणियसाहस्सीओ पण्णत्ता। देवेन्द्र देवराज ईशान के अस्सी हजार सामानिक देव कहे गये हैं। 378 जंबुद्दीवे णं दीवे असीउत्तरं जोयणसयं ओगाहेत्ता सूरिए उत्तरकट्टोवगए पढमं उदयं करे। जम्बूद्वीप के भीतर एक सौ अस्सी योजन भीतर प्रवेश कर सूर्य उत्तर दिशा को प्राप्त हो प्रथम बार (प्रथम मंडल में) उदित होता है। विवेचन--सूर्य का सर्व संचारक्षेत्र पांच सौ दश योजन है। इसमें से तीन सौ तीस योजन लवण समुद्र के ऊपर है और शेष एक सौ अस्सी योजन जम्बूद्वीप के भीतर है, जह वहाँ उत्तर दिशा की ओर से उदित होता है। // अशीतिस्थानक समवाय समाप्त / एकाशीतिस्थानक-समवाय ३७९---नवनवमिया भिक्खुपडिमा एक्कासीइ राइदिएहि चउहि य पंचुत्तरेहि [भिक्खासएहि] पाहासुत्तं जाव पाराहिया [भवइ] / नवनवमिका नामक भिक्षप्रतिमा इक्यासी रात दिनों में चार सौ पाँच भिक्षादत्तियों द्वारा यथासूत्र, यथामार्ग, यथातत्त्व स्पृष्ट, पालित, शोभित, तीरित, कीत्तित और पाराधित होती है / विवेचन-इस भिक्षुप्रतिमा के पालन करने में नौ-नौ दिन के नव-नवक अर्थात् इक्यासी दिन लगते हैं। प्रथम नौ दिनों में प्रतिदिन एक-एक भिक्षादत्ति ग्रहण की जाती है। दूसरे नौ दिनों में प्रतिदिन दो-दो भिक्षादत्तियां ग्रहण की जाती हैं। इस प्रकार प्रत्येक नौ-नौ दिनों में एक-एक भिक्षादत्ति को बढ़ाते हुए नवें नौ दिनों में प्रतिदिन नौ-नौ भिक्षादत्तियाँ ग्रहण की जाती हैं। उन सब का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org