________________ षष्टिस्थानक समवाय [121 - ३०५-गोथूभस्स णं आवासपव्ययस्स पच्चथिमिल्लामो चरमंताओ वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमज्झदेसभाए एस णं अट्ठावन्नं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / एवं चउद्दिसं पि नेयव्वं। गोस्तुभ प्रावासपर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग से बड़वामुख महापाताल के बहुमध्य देशभाग का अन्तर अट्ठावन हजार विना किसी बाधा के कहा गया है / इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में जानना चाहिए। विवेचन--ऊपर गोस्तुभ आवासपर्वत से बड़वामुख महापाताल के मध्य भाग का सत्तावन हजार योजन अन्तर जिस प्रकार से बतलाया गया है उसमें एक हजार योजन और आगे तक का माप मिलाने पर अट्ठावन हजार योजन का सिद्ध हो जाता है / इसी प्रकार शेष तीन महापातालों का भी अन्तर जानना चाहिए। / / अष्टपञ्चाशत्स्थानक समवाय समाप्त // एकोनषष्टिस्थानक-समवाय ३०६-चंदस्स णं संवच्छरस्स एगमेगे उऊ एगूणट्टि राईदियाई राइंदियग्गेणं पण्णत्ते / चन्द्रसंवत्सर (चन्द्रमा की गति की अपेक्षा से माने जाने वाले संवत्सर) की एक-एक ऋतु रात-दिन की गणना से उनसठ रात्रि-दिन की कही गई है। ३०७--संभवे णं अरहा एगूणसटुिं पुव्वसयसहस्साई अगारमज्झे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पन्दइए। संभव बहन् उनसठ लाख पूर्व वर्ष अगार के मध्य (गृहस्थावस्था) में रहकर मुडित हो अगार त्याग कर अनगारिता में प्रवजित हुए। ३०८-मल्लिस्स णं अरहओ एगूणट्टि ओहिनाणिसया होत्था / मल्लि अर्हन के संध में उनसठ सौ (5900) अवधिज्ञानी थे। // एकोनषष्टिस्थानक सूत्र समाप्त / / षष्टिस्थानक-समवाय ३०९--एगमेगे णं मंडले सूरिए सट्ठिए सट्ठिए मुहुत्तेहि संधाएइ / सूर्य एक एक मण्डल को साठ-साठ मुहूर्तों से पूर्ण करता है। विवेचन--सूर्य को सुमेरु की एक वार प्रदक्षिणा करने में साठ मुहूर्त या दो दिन-रात लगते हैं / यतः सूर्य के धूमने के मंडल एक सौ चौरासी हैं, अतः उसको दो से गुणित करने पर (1844 2368) तीन सौ अड़सठ दिन-रात आते हैं। सूर्य संवत्सर में इतने ही दिन-रात होते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org