________________ [समवायाङ्गसूत्र संयम, 13. अपहृत्य-संयम, 14. प्रमार्जना-संयम, 15. मनः-संयम, 16. वचन-संयम, 17. कायसंयम। विवेचन--समिति या सावधानीपूर्वक यम-नियमों के पालन करने को संयम कहते हैं और संयम का पालन नहीं करना असंयम है / एकेन्द्रिय पृथिवीकाय आदि जीवों की रक्षा करना, उनको किसी प्रकार से बाधा नहीं पहुँचाना पृथिवीकायादि जीवविषयक संयम है और उनको बाधादि पहुँचाना उनका असंयम है। अजीव पौद्गलिक वस्तुओं सम्बन्धी संयम अजीव-संयम है और उनकी अयतना करना अजीव-असंयम है / स्थान, उपकरण, वस्त्र-पात्रादि का विधिपूर्वक पर्यवेक्षण करना प्रेक्षासंयम है और उनका पर्यवेक्षण नहीं करना, या अविधिपूर्वक करना प्रेक्षा-असंयम है। शत्रु-मित्र में, और इष्ट-अनिष्ट वस्तुनों में राग-द्वेष नहीं करना, किन्तु उनमें मध्यस्थभाव रखना उपेक्षासंयम है / उनमें राग-द्वेषादि करना उपेक्षा-असंयम है / संयम के योगों की उपेक्षा करना अथवा असंयम के कार्यों में व्यापार करना उपेक्षा असंयम है / जीवों को दूर कर निर्जीव भूमि में विधिपूर्वक मल-मूत्रादि का परठना अपहृत्य-संयम है और प्रविधि से परठना अपहृत्य-असंयम है / पात्रादि का विधिपूर्वक प्रमार्जन करना प्रमार्जना संयम है और प्रविधिपूर्वक करना या न करना अप्रमार्जना-असंयम है / मन, वचन, काय का प्रशस्त व्यापार करना उनका संयम है और अप्रशस्त व्यापार करना उनका असंयम है। ११८–माणुसुत्तरे णं पव्वए सत्तरस एक्कवीसे जोयणसए उडुढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते / सम्वेसि पि णं वेलंधर-अणुवेलंधरणागराईणं आवासपव्वया सत्तरसएक्कवीसाइं जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता / लवणे णं समुद्दे सत्तरस जोयणसहस्साई सव्वागणं पण्णत्ते। मानुषोत्तर पर्वत सत्तरह सौ इक्कीस (1721) योजन ऊंचा कहा गया है। सभी वेलन्धर और अनुवेलन्धर नागराजों के आवास पर्वत सत्तरह सौ इक्कीस योजन ऊंचे कहे गये हैं / लवणसमुद्र को सवोग्र शिखा सत्तर हजार योजन ऊंची कही गई है। ११९--इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सातिरेगाइं सत्तरस जोयणसहस्साई उड्ढं उप्पतित्ता ततो पच्छा चारणाणं तिरिआ गती पवत्तति / इस रत्नप्रभा पृथिवी के बहुसम रमणीय भूमि भाग से कुछ अधिक सत्तरह हजार योजन ऊपर जाकर (उठ कर) तत्पश्चात् चारण ऋद्धिधारी मुनियों की नन्दीश्वर, रुचक आदि द्वीपों में जाने के लिए तिझै गति होतो है। 120. --चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो तिगिछिकूडे उप्पायपव्वए सत्तरस एक्कवीसाई जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते / बलिस्स णं असुरिंदस्स अगिदे उप्पाययव्वए सत्तरस एक्कवीसाई जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते। असुरेन्द्र असुरराज चमर का तिगिछिकूटनामक उत्पात पर्वत सत्तरह सौ इक्कीस (1721) योजन ऊंचा कहा गया है। असुरेन्द्र बलि का रुचकेन्द्रनामक उत्पात पर्वत सत्तरह सौ इक्कीस (1721) योजन ऊंचा कहा गया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org