________________ एकोनत्रिशत्स्थानक समवाय] 107 अष्टत्रिंशत्स्थानक-समवाय २३४-पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अट्टत्तीसं अज्जिआसाहस्सीओ उक्कोसिया अज्जियासंपया होत्था। पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् के संघ में अड़तोस हजार प्रायिकाओं की उत्कृष्ट प्रायिकासम्पदा थी। २३५~-हेमवय-एरण्णवइयाणं जीवाणं धणुपिट्ठ अट्टत्तीसं जोयणसहस्साई सत्त य चत्ताले जोयणसए दसएगूणवीसइभागे जोयणस्स किंचि विसेसूणा परिक्खेवेणं पण्णत्ते। अत्थस्स णं पव्ययरणो बितिए कंडे अट्टत्तीसं जोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। हैमवत और ऐरण्यवत क्षेत्रों की जीवाओं का धनुःपृष्ठ अड़तीस हजार सात सौ चालीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दश भाग से कुछ कम (387404) परिक्षेप वाला कहा गया है / जहाँ सूर्य अस्त होता है, उस पर्वतराज मेरु का दूसरा कांड अड़तीस हजार योजन ऊंचा है। 236- खुड्डियाए णं विमाणपविभत्तीए बितिए बग्गे अत्तीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता। - क्षुद्रिका विमानप्रविभक्ति नामक कालिक श्रुत के द्वितीय वर्ग में अड़तीस उद्देशन काल कहे गये हैं। ॥अष्टत्रिशत्स्थानक समवाय समाप्त। एकोनचत्वारिंशत्स्थानक-समवाय २३७-नमिस्स णं अरहनो एगूणचत्तालीसं आहोहियसया होत्था / समयखेत्ते एगूणचत्तालीसं कुलपम्वया पण्णता। तं जहा-तीसं वासहरा, पंच मंदरा, चत्तारि उसुकारा / दोच्च-चउत्थ-पंचम-छट्ठ-सत्तमासु णं पंचसु पुढवीसु एगूणचत्तालीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। नमि अर्हत के उनतालीस सौ (3900) नियत (परिमित) क्षेत्र को जानने वाले अवधिज्ञानी मुनि थे। समय क्षेत्र (पढ़ाई द्वीप) में उनतालीस कुलपर्वत कहे गये हैं। जैसे--तीस वर्षधर पर्वत, पांच मन्दर (मेरु) और चार इषुकार पर्वत। दूसरी, चौथी, पांचवीं, छठी और सातवीं, इन पांच पृथिवियों में उनतालोस (२५+१०+३+पांच कम एक लाख और 5= 39) लाख नारकावास कहे गये हैं। २३८-नाणावरणिज्जस्स मोहणिज्जस्स गोत्तस्स पाउयस्स एयासि णं चउण्हं कम्मपगडोणं एगणचत्तालीसं उत्तरपगडीओ पण्णताओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org