________________ चतुर्दशस्थानक समवाय] [45 ९८-जंबुद्दीवे णं दीवे चउद्दस महानईग्रो पुवावरेण लवणसमुह समपंति, तं जहा---गंगा, सिंधू, रोहिआ, रोहिअंसा, हरी, हरिकता, सोमा, सीग्रोदा, नरकंता, नारीकता, सुवष्णकूला, रुप्प. कूला, रत्ता, रत्तवई। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में चौदह महानदियां पूर्व और पश्चिम दिशा से लवणसमुद्र में जाकर मिलती हैं। जैसे -गंगा-सिन्धु, रोहिता-रोहितांसा, हरी-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, नरकान्तानारीकान्त।, सुवर्ण-कूला-रुप्यकुला, रक्ता और रक्तवती। विवेचन-उक्त सात युगलों में से प्रथम नाम वाली महानदी पूर्व की ओर से और दूसरे नाम वाली महानदी पश्चिम की ओर से लवणसमुद्र में प्रवेश करती है / नदियों का एक-एक युगल भरत आदि सात क्षेत्रों में क्रमशः प्रवहमान रहता है। ९९-इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउद्दस पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता / पंचमीए णं पढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चउस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता / असरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं चउद्दस पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता / सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु प्रत्थेगइयाणं देवाणं चउद्दस पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता। लंतए कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं चउद्दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। __ इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति चौदह पल्योपम कही गई है। पांचवीं पृथिवी में किन्हीं-किन्हीं नारकों की स्थिति चौदह सागरोपम की है। किन्हीं-किन्हीं असुरकुमार देवों की स्थिति चौदह पल्योपम को है। सौधर्म और ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति चौदह पल्योपम कही गई है / लान्तक कल्प में कितनेक देवों की स्थिति चौदह सागरोपम कही गई है। १००-~-महासुक्के कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं जहण्णण चउद्दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। जे देवा सिरिकंतं सिरिमहिअं सिरिसोमनसं लंतयं काविट्ठ महिंदं महिंदकतं महिंदुत्तरडिसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिं णं देवाणं उवकोसेणं चउद्दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। ते णं देवा चउद्दसहि अद्धमासेहि आणमंति वा पाणमंति वा, उस्ससंति वा, नीससंति वा / तेसि णं देवाणं चउद्दसहि वाससहस्सेहिं प्राहारट्टे समुप्पज्जइ। संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे चउद्दसहि भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति बुझिस्संति मच्चिस्संति परिनिवाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति / महाशुक्र कल्प में कितनेक देवों की जघन्य स्थिति चौदह सागरोपम कही गई है / वहां जो देव श्रीकान्त श्रीमहित, श्रीसौमनस, लान्तक, कापिष्ठ, महेन्द्र महेन्द्रकान्त और महेन्द्रोत्तरावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति चौदह सागरोपम कही गई है / वे देव चौदह अर्धमासों (सात मासों) के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-नि:श्वास लेते हैं / उन देवों को चौदह हजार वर्षों के बाद पाहार की इच्छा उत्पन्न होती है। कितनेक भव्य सिद्धिक जीव ऐसे हैं जो चौदह भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। // चतुर्दशस्थानक समवाय समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org