________________ 119 120 121 122 123 षट्पंचाशत्स्थानक समवाय नक्षत्रयोग, विमल जिन के गण और गणधर / सप्तपंचाशत्स्थानक समवाय तीन गणिपिटक के अध्ययन, मोस्तुभ पर्वत और महापाताल का अन्तर, मल्ली जिन के मन: पर्यवज्ञानी, महाहिमवन्त और रुक्मि पर्वतों की जीवा का धनु : पृष्ठ / अष्टपंचाशत्स्थानक समवाय नारकावास, कर्मप्रकृतियाँ, गोस्तूभ और वडवामुख महापाताल आदि का अन्तर / एकोनषष्ठिस्थानक समवाय चन्द्रसंवत्सर, संभव जिन का गृहवास, मल्ली जिन के अवधिज्ञानी मुनि / षष्टिस्थानक समवाय सूर्य की मण्डलपूत्ति, लवणसमुद्र का अग्रोदक, विमल जिन की अवगाहना, बलीन्द्र के और ब्रह्म देवेन्द्र के सामानिक देव, सौधर्म-ईशान कल्प के विमानावास / एकषष्टिस्थानक समवाय ऋतुमास, मन्दर पर्वत का प्रथम काण्ड, चन्द्रमण्डल / द्विषष्टिस्थानक समवाय पंचसांवत्सरिक युग में पूणिमाएँ-अमावस्याएँ, वासुपूज्य जिन के गण-गणधर, चन्द्र-कलानों की वद्धि-हानि, सौधर्म-ईशान कल्प के विमानावास, वैमानिक-विमानप्रस्तट / त्रिषष्टिस्थानक समवाय ऋषभ जिन का महाराज-काल, हरिवास-रभ्यकवास के मनुष्यों का यौवन, निषध-नीलवन्त पर्वत पर सूर्योदय / चतुःषष्टिस्थानक समवाय अष्टाष्टमिका भिक्षुप्रतिमा, असुरकुमारावास, दधिमुख पर्वत, विमानावास / पंचषष्टिस्थानक समवाय जम्बूद्वीप में सूर्यमण्डल, मौर्यपुत्र का गृहवास, सौधर्मावतंसक विमान की एक-एक दिशा में भवन / षट्षष्टिस्थानक समवाय मनुष्यक्षेत्र में चन्द्र-सूर्य, श्रेयांस जिन के गण और गणधर, ग्राभिनिबोधिक ज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति। सप्तषष्टिस्थानक समवाय नक्षत्रमास, हैमवत-ऐरण्यवत की भुजाएँ, मन्दर पर्वत, नक्षत्रों का सीमा विष्कम्भ / अष्टषष्टिस्थानक समवाय धातकीखण्ड में विजय, राजधानियां, तीर्थकर, चक्रवती, बलदेव, वासुदेव, विमल जिन की श्रमणसम्पदा / 123 125 125 127 [ 116 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org