________________ की स्थिति, नाम कर्म की प्रकृतियाँ, लवणसमुद्र की वेला, विमानविभक्ति के द्वितीय वर्ग के उद्देशनकाल, पंचम-षष्ठ आरों का कालपरिमाण / त्रिचत्वारिंशत्स्थानक समवाय कर्मविपाक अध्ययन, नारकावास, धर्म जिन की अवगाहना, मंदर पर्वत का अन्तर, नक्षत्र, महा विमानविभक्ति के पंचम वर्ग के उद्देशनकाल / षट्चत्वारिंशत्स्थानक समवाय दष्टिवाद के मातृकापद, प्रभंजनेन्द्र के भवनावास / सप्तचत्वारिंशत्स्थानक समवाय सूर्य का इष्टिगोचर होना, अग्निभूति का गृहवास / अष्टचत्वारिंशस्थानक समवाय चक्रवर्ती के पट्टन, धर्म जिन के गण और गणधर, सूर्यमंडल का विस्तार / एकोनपंचाशत्स्थानक समवाय भिक्षुप्रतिमा, देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्य, त्रीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट स्थिति / पंचाशत्स्थानक समवाय मुनिसुव्रत जिन की आर्याएँ, दीर्घवताढयों का विष्कंभ, लान्तककल्प के विमानावास, तिमिस्र खण्डप्रपात गुफाओं की लम्बाई, कांचनक पर्वतों का विस्तार / एकपंचाशत्स्थानक समवाय आचारांग-प्रथम श्रृतस्कन्ध के उद्देशनकाल, चमरेन्द्र की सुधर्मा सभा, सुप्रभ बलदेव का प्रायुष्य, उत्तर कर्मप्रकृतियाँ। द्विपंचाशत्स्थानक समवाय मोहनीय कर्म के नाम, गोस्तुभ ग्रादि पर्वतों का अन्तर, कर्मप्रकृतियाँ, सौधर्म-सनत्कुमारमाहेन्द्र के विमानावास। 114 त्रिपंचाशत्स्थानक समवाय 118 देवकुरु प्रादि की जीवाएँ, भ० महावीर के श्रमणों का अनुत्तरविमानों में जन्म, संमृछिम उरपरिसों की उत्कृष्ट स्थिति। चतु:पंचाशत्स्थानक समवाय महापुरुषों का जन्म, अरिष्टनेमि की छमस्थपर्याय, भ. महावीर द्वारा एक दिन में 54 व्याख्यान, अनन्त जिन के गुण, गणधर / पंचपंचाशत्स्थानक समवाय मल्ली अर्हत् का आयुष्य, मन्दर और विजयादि द्वारों का अन्तर, भ० महावीर द्वारा पुण्यपापविपाकदर्शक अध्ययनों का प्रतिपादन, नारकावास, कर्मप्रकृतियाँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org