________________ छत्तीसवें समवाय के चौथे सूत्र में चैत्र और आश्विन मास में एक दिन पौरुषी छाया का प्रमाण छत्तीस अंगुल का होता कहा है तो सूर्यप्रज्ञप्ति७१३ में भी यही वर्णन है। संतीसवें समवाय के पांचवें सूत्र में कार्तिक कृष्णा सप्तमी के दिन सूर्य सैतीस अंगुलप्रमाण पौरुषी छाया करके गति करता है। यह वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति७१४ में है। चालीसवें समवाय के छठे सुत्र में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सूर्य चालीस अंगुलप्रमाण पौरुषी छाया करके गति करता है। यह वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति.१५ में भी है। पैतालीसवें समवाय के सातवें सूत्र में डेढ़ क्षेत्र वाले सभी नक्षत्र चन्द्र के साथ पैतालीस मुहर्त का योग करते हैं। यह वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति७१६ में भी है। ___ छप्पनवें समवाय के प्रथम सूत्र में जम्बूद्वीप में छप्पन नक्षत्रों ने चन्द्र के साथ योग किया व करते हैं, यही वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति०१७ में भी उपलब्ध होता है। बासठवें समवाय के प्रथम सूत्र में वर्णन है कि पांच संवत्सर वाले युग की बासठ पूर्णिमाएँ और बासठ अमावस्याएँ होती हैं, यह वर्णन सूत्रप्रज्ञप्ति में भी है। इकहत्तरवें समवाय के प्रथम सूत्र में वर्णन है कि नौथे चन्द्र-संवत्सर की हेमन्त ऋतु के इकहत्तर अहोरात्रि व्यतीत होने पर सर्वबाह्य मण्डल से सूर्य पुनरावृत्ति करता है। यही वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति में प्राप्त है। बहसरवें समवाय का पांचवां सूत्र है, पृष्कराध द्वीप में बहत्तर चन्द्र व सूर्य प्रकाश करते हैं। यही वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति 20 में भी है। अठासीवें समवाय के प्रथम सूत्र में वर्णन है कि प्रत्येक चन्द्र, सूर्य का अठासी-अठासी ग्रह का परिवार है / यही वर्णन सूर्यप्रज्ञप्ति 21 में भी प्राप्त होता है। अठानवें वें समवाय के चतुर्थ सूत्र से लेकर सातवें सूत्र तक जो वर्णन है, वह सूर्यप्रज्ञप्ति 22 में भी इसी तरह मिलता है। इस तरह सूर्यप्रज्ञप्ति के साथ समवायांग के अनेक सूत्र मिलते हैं। समवायांग और उत्तराध्ययन मूल सूत्रों में उत्तराध्ययन का प्रथम स्थान है। यह प्रागम भाव-भाषा और शैली की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है / इसमें धर्म, दर्शन, अध्यात्म, योग आदि का सुन्दर विश्लेषण हुआ है। हम यहाँ पर संक्षेप में 713. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्रा. 10, प्रा. 2., सू. 43 714. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्रा. 10, सू. 43 715. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्रा. 10, सू. 43 716. सूर्यप्रज्ञप्ति--प्रा. 3, सू. 35 717. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्रा. 10, प्रा. 22, सू. 60 718. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्रा. 13, सू. 80 719. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्रा. 11 720. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्रा. 19 721. सूर्यप्रज्ञप्ति--प्रा. 18, सू. 51 722. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्रा. 1, 10, प्रा. 9, सू. 42 [ 103 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org