Book Title: Acharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Kiran Srivastav
Publisher: Ilahabad University
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विद्वान्, राजनीतिज्ञ अवश्य थे। 'सूक्तिमुक्तावली' में तरल नामक कवि का भी उल्लेख है जिन्होंने 'सुवर्णबन्ध' नामक रचना द्वारा यायावरकुल की श्रीवृद्धि की थी।1 यायावरवंश में राजशेखर के जिन पूर्वज कविराज का नामोल्लेख है उनके विषय में कोई परिचय प्राप्त नहीं होता। राजशेखर ने यह उल्लेख तो अवश्य किया है कि उनके सभी पूर्वज प्रसिद्ध थे, किन्तु इनमें से किसी की भी कोई रचना
उपलब्ध नहीं है।
आचार्य राजशेखर का व्यक्तित्व :
बाल्यकाल से ही राजदरबार में प्रविष्ट आचार्य राजशेखर निरन्तर किसी न किसी राजा के
सभाकवि थे। उन्होंने अपने लिए 'बालकवि' तथा 'कविराज' शब्द प्रयुक्त किए हैं। संभवत: यह किसी
राजदरबार से प्राप्त उपाधियाँ हों। वह प्रतिहारवंशी नरेश महेन्द्रपाल की सभा में राजगुरू अथवा
उपाध्याय के पद पर प्रतिष्ठित थे 3 किन्तु वह 'बालकवि' संभवतः महेन्द्रपाल के पिता मिहिरभोज की
सभा में थे। आचार्य राजशेखर स्वयं को बाल्मीकि, भर्तृमेण्ठ तथा भवभूति का अवतार स्वीकार करते थे,4 अत: इन कवियों से वह अवश्य ही प्रभावित थे। वह कविराज की उपाधि से विभूषित भी थे।
1. "यायावरकुलश्रेणेहरियष्टेश्च मण्डनम्। सुवर्णबन्धरुचिरस्तरलस्तरलो यथा।
(सूक्तिमुक्तावली)
कर्पूरमञ्जरी (कोनो) पृ० 183 (द्वि० सं० 1963) 2 बालकविः कविराजो निर्भयराजस्य तथोपाध्यायः। इत्यस्य परम्परया आत्मा माहात्म्यमारूढः॥
(कर्पूरमञ्जरी-1-9) 3 (क) “देवो यस्य महेन्द्रपालनृपतिः शिष्यो रघुग्रामणीः।"
बालरामायण - (1/18) बालभारत - (1/11) (ख) "रघुकुलतिलको महेन्द्रपालः सकलकलानिलयः स यस्य शिष्यः।
(विद्धशालभञ्जिका-1/6) 4. "तत्र चैवंविधो दैवज्ञानां प्रवाद" .
"बभूव बल्मीकभवः कवि पुरा ततः प्रपेदे भुवि भर्तृमेण्ठताम् । स्थितः पुनर्यो भवभूतिरेखया सः वर्तते सम्प्रति राजशेखरः॥"
(बालभारत - 1-12)